Shri Hari कुसुमांजलि जीवन परिचय जीवन परिचय(श्रीलालता प्रसाद जी) पुस्तकालय श्री हरि

वंश परिचय page.2

" श्रीहरि "

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किसी भी देश की सच्ची संपत्ति संतजन ही होते हैं| वह जिस समय आविर्भूत होते हैं उस समय की जनता के लिए उनका आचरण ही सच्चा पथ प्रदर्शन होता है | वस्तुतः विश्व के कल्याण के लिए जिस समय जिस धर्म की आवश्यकता होती है उस धर्म का आदर्श स्थापित करने के लिए स्वयं श्री भगवान ही तत्कालीन संतो के रूप में आविर्भूत होते हैं | इसी से शास्त्रों में संतों को भगवान का नित्या अवतार कहा है | आज सारा संसार जनवाद के मद में उन्मत्त है | श्रद्धा सरलता और सहानुभूति के स्थान में निरंतर बुद्धिवाद कूटनीति और स्वार्थ का साम्राज्य फैलता जा रहा है | इसी से लोगों की मनोवृत्तियां अत्यंत ही बहिर्मुखी हो गई हैं | संपूर्ण जगत नास्तिकता एवं अशांति की विभीषिका में संतप्त हो रहा है | इस समय अधिकांश मानव जाति किसी प्रकार पारस्परिक स्पर्धा एवं असूया की अग्नि से अपना जीवन सुरक्षित रखने के लिए व्यग्र है | प्रत्येक देश अपने पड़ोसी एवं प्रतिद्वंदी देश को हड़पने के लिए उत्सुक है और यही दशा अधिकांश जाती समाज एवं व्यक्तियों की भी है | ऐसी अवस्था में श्री भगवान की अकूतोभय चरणारविंदों की शरण ही इन संसारानल संतप्त जीवो की एकमात्र आश्रय है | और उनकी प्राप्ति आकुल हृदय से श्री हरि नाम संकीर्तन करने से ही प्राप्त हो सकती है | शास्त्रों ने इस कलहप्रधान कलयुग में जीवो के उद्धार का प्रधान साधन श्री भगवन नाम कीर्तन ही बताया है | परमहंस शिरोमणि भगवान शुक नें विप्रशापदग्ध महाराज परीक्षित की कल्याण कामना से उन्हें भागवती कथा श्रवण कराई | उस का उपसंहार करते हुए वह कहते हैं-
कलेर्दोषनिधे राजन्नास्ति ह्येको महान गुण:|
कीर्त्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसड्ग: पुन ब्रजेत् |
कृते यद्ध्यायतो विष्णुं त्रेतायां यजतो मखै:|
द्वापरे परिचर्यायां कलौ तद्धरिकीर्तनात्||
हे राजन इन दोषों के भंडार कलयुग में एक बड़ा भारी गुण है वह यह कि इसमें केवल श्री भगवन्नाम कीर्तन करने से ही मनुष्य सब प्रकार के संगों से छूटकर परम पद प्राप्त कर लेता है | जिस पद की प्राप्ति सत्य युग में भगवान का ध्यान करने से त्रेता में यज्ञों द्वारा उनकी आराधना करने से और द्वापर में सेवा पूजा करने से होती थी वही कलियुग में श्री भगवन नाम संकीर्तन करने से ही हो जाती है | अतः इस समय जीवों के उद्धार का प्रधान साधन श्री हरि नाम संकीर्तन ही है | अवार्चीन काल में जिन महानुभावों ने इस कीर्तन वक्त का प्रचार किया है उनमें प्रातः स्मरणीय महाप्रभु श्री चैतन्य चंद्र का पवित्र नाम सर्वत्र सुप्रसिद्ध है | आज से प्रायः 400 वर्ष पूर्व वंग देश में आप का अविर्भाव हुआ था | आपने किसी प्रकार के उपदेश आदेश या शास्त्रार्थ के द्वारा नहीं अपने जीवन के द्वारा ही अनेकों जीवो को भगवत्प्रेम प्रदान किया था | वह भगवन्नाम की ही लूट किया करते थे और भगवन नाम की ही भिक्षा मांगते थे | भगवन नाम ही उनका जीवन था और भगवन्नाममय ही वह समस्त संसार को देखना चाहते थे| उन्होंने किन्ही के पैरों में पड़कर किन्ही को आलिंगन करके तथा किन्ही से प्रार्थना करके भगवन्नाम कीर्तन कराया | इस प्रकार जो जो भी उनके संसर्ग में आए वही नाम अमृत का पान करके भगवत्प्रेम में पागल हो गए | उस समय श्रीमन महाप्रभु जी ने जो भगवन्नाम की अनवरत वर्षा की थी उससे सारा बंगाल आप्लावित हो उठा | उस भगवत्प्रेमपूर में अवगाहन करके आज तक करोड़ों नर-नारी भगवत सानिध्य प्राप्त कर चुके हैं | आज सारा उत्तर भारत श्री गौरांग देव के इस महादान का ऋणी है | उत्तर भारत में जिस प्रकार श्रीमन महाप्रभु जी ने भगवन्नाम का प्रचार किया था उसी प्रकार दक्षिण में श्री नरसिंह मेहता तुकाराम नामदेव एवं समर्थ श्री रामदास स्वामी ने नाम कीर्तन की सुरसरि प्रवाहित की | इस प्रकार गत 400 वर्षों से भारत वर्ष में कल्याण कामी पुरुषों का श्री हरि नाम संकीर्तन ही मुख्य संम्बल रहा है | तब से अब तक अनेकों महापुरुषों ने समय-समय पर आविर्भूत होकर सर्वसाधारण को इस असाधारण धर्म में दीक्षित किया है | किंतु यह सब होते हुए भी आज से प्राय:- 25 वर्ष पूर्व उत्तर भारत में संकीर्तन की ओर से अत्यंत शिथिलता देखी जाती थी | एक बंगाल को छोड़कर कहीं भी सर्व साधारण जनता को इसका कुछ भी पता नहीं था | केवल श्री वृंदावन अयोध्या चित्रकूट एवं कुछ अन्य तीर्थ स्थानों में ही इसकी यत्किंचित झांकी होती थी | अतः विश्वात्मा श्री हरि ने पुनः अनेकों महानुभावों के रूप में अवतरित होकर इस महान धर्म की प्रतिष्ठा की | ऐसे महापुरुषों में श्री श्री हरि बाबा जी महाराज का स्थान सर्वोपरि कहा जा सकता है | आप वर्तमान समय में श्री भगवन्नाम कीर्तन के प्रधानाचार्य हैं | आपकी प्रचार पद्धति ठीक वही है जो श्रीमन महाप्रभु जी की थी तथा आपका जीवन भी बहुत कुछ उन्हीं से मिलता हुआ है | आपकी और उनकी जीवन में कितना शाम में है यह बात आगे की प्रष्ठों से स्पष्ट हो जाएगी |
महापुरुषों का आविर्भाव वंश अथवा स्थान स्वतह ही सर्व पूज्य हो जाता है | उनकी मेहता किसी भी प्रकार की वाह्य परिस्थिति की अपेक्षा नहीं रखती अपितु उन्हीं के कारण उन से संबंध रखने वाली परिस्थिति महिमान्वित हो जाती है| फिर भी अधिकतर देखा जाता है कि किसी न किसी प्रकार की वंश परंपरागत दैवी संपद ही किन्हीं महापुरुष के रूप में घनीभूत होकर प्रकट होती है | ऐसी ही बात यहां पर देखी जाती है | आपका आविर्भाव यद्यपि सिख धर्मानुयाई अहलूवालियों के कुल में हुआ था, तथापि कई पीढ़ियों से इस वंश में अच्छे दिव्य गुण संपन्न महानुभाव ही उत्पन्न होते रहे हैं | वह सभी अच्छे सुशिक्षित साधु सेवी और सदाचार संपन्न सज्जन थे | आर्थिक दृष्टि से भी उनकी स्थिति अच्छी थी इन का मूल निवास स्थान पूर्वी पंजाब जिला होशियारपुर में गंधवाल नाम का गांव था | हमारे चरित्र नायक के वृद्ध प्रपितामह बाबा पहलू अच्छे पढ़े-लिखे और साधु सेवी सज्जन थे
इनका प्रधान व्यवसाय था खेती | घर में खाने पीने की कोई कमी नहीं थी आसपास के लोगों में इनकी अच्छी प्रतिष्ठा थी | घर पर आए हुए अतिथि और साधुओं की यह बड़े प्रेम से सेवा करते थे | किंतु इनकी कोई संतान नहीं थी | एक संपन्न सद्गृहस्थ के लिए संतान का अभाव साधारण दुख नहीं होता अतः यह कुछ उदास रहा करते थे | इन्हीं दिनों एक अवधूत महात्मा दत्तात्रेय की भांति उन्मत्त अवस्था में उधर विचारा करते थे | वह 24 घंटों में केवल एक बार मध्यान के समय ही मधुकरी के लिए गांव के भीतर जाया करते थे | उस समय हमारे पहलू बाबा प्रायः इन्हें भिक्षा कराया करते थे | एक दिन अवधूत जी मधुकरी के लिए इनके यहां पधारे उन्हें आते देखकर वह जल्दी से घी बूरा मिलाकर रोटी का मलीदा बनाने लगे परंतु जितनी देर में मलीदा बना कर लाए अवधूत जी वहां से चल दिए थे | यह दौड़ कर उनके पीछे हो लिए | उन्हें आवाज देकर रोकने का इन का साहस नहीं हुआ | अवधूत जीतो मस्ताने फकीर ठहरे वह बिना दाएं बाएं या पीछे देखे बराबर चलते रहे और प्रायः 20 मील निकल गए | |
उनके पीछे-पीछे बाबा पहलू भी मलीदा लिए चलते रहे | अंत में अवधूत जी अकस्मात रूके और पीछे को घूम कर बाबा पहलू को देखा तो हंसने लगे | फिर पात्र उनके हाथ से लेकर बड़ी प्रसन्नता से भोजन किया और बोले तू क्या चाहता है बाबा पहलू ने चरणों में गिरकर कहा महाराज मेरे कोई संतान नहीं है कृपया एक पुत्र प्रदान करें | इस पर अवधूत जी कुछ देर नेत्र मूंदकर ध्यान अवस्थित खड़े रहे | फिर बोले भाई तुम्हारे भाग्य में तो कई जन्म तक संतान का योग नहीं है | अच्छा हम स्वयं ही तुम्हारे घर में जन्म लेंगे | अवधूत जी अपने साथ एक धनुष वंशी और पुस्तक रखा करते थे | यह तीनों चीजें बाबा पहलू को देकर उन से बोले तुम इन्हें ले जाओ इनकी नित्य प्रति पूजा करना इससे हम स्वयं तुम्हारे घर में जन्म लेंगे और तुम्हारे वंश का खूब विस्तार करेंगे इसके पश्चात भी तुम्हारी पांचवीं पीढ़ी में हम पुन: जन्म लेंगे और विरक्त हो कर लोकोद्धार का कार्य करेंगे|
यह कहकर अवधूतजीतो जंगल में चले गए और बाबा पहलू घर लौट आए | इस कटोरे का उच्छिष्ट प्रसाद उन्होंने अपनी धर्म पत्नी को दिया और स्वयं भी खाया | एक महापुरुष का अमोघ वर पाकर इन दंपति के हर्ष का पारावार न रहा | कुछ दिनों पश्चात अवधूत जीने शरीर त्याग दिया कहां किस प्रकार इसका कुछ पता नहीं | उन्हीं दिनों बाबा पहलू की पत्नी ने गर्भ धारण किया इस समय उनकी विचित्र अवस्था थी | एक उच्च कोटि के महापुरुष के गर्भ में आने पर उनके शरीर से शुद्ध सत्त्वमय तेज की किरणें निकलने लगी | बस यथा समय एक परम तेजस्वी पुत्र रत्न का जन्म हुआ | उनका नाम रखा गया बाबा बुद्ध सिंह बालक बड़ा ही सुंदर सुडौल और मनोहर था | उसकी शिक्षा दीक्षा की अच्छी व्यवस्था की गई अतः बाबा बुद्धसिंह अच्छे सुशिक्षित सदाचारी और सूरवीर सद्गृहस्थ हुए | इन्हें घोड़े की सवारी और युद्ध करने का बड़ा शौक था | अपने गुणों के कारण इन्होंने बड़ा सुयश प्राप्त किया | उन्होंने कई धर्म युद्धों में विजय प्राप्त की थी तथा एक बार तो एक ही रात में घोड़े पर चढ़कर सौ मील चले गए थे | यह जैसे वीर थे वैसे ही आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत बड़े चढ़े थे अतः ग्रहस्थोचित कार्यों को करते हुए भी निरंतर योगारूढ़ रहते थे | उन दिनों पंजाब केसरी महाराज रणजीत सिंह का राज्य था | यह उनकी सेना में एक उच्च पदाधिकारी थे | अतः सिख गुरुओं की तरह यह अमीरी और पीऱी दोनों में ही पूर्ण थे | कहते हैं एक बार 24 घंटे में सौ मील पैदल चलकर लाहौर पहुंच गए थे | इनके जीवन में अनेकों ऐसी अलौकिक घटनाएं हुई थी किंतु अब वे काल के गर्भ में विलीन हो गई हैं बाबा बुद्ध सिंह तो पूर्व जन्म से ही सिद्ध योगी थे | अतः आगे भी इनके वंश में जो लोग हुए वह सभी न्यूनाधिक रूप में योग संपत्ति से संपन्न थे | इस प्रकार यह सारा वंश योगियों का कुल हुआ | बाबा बुद्ध सिंह जी के पश्चात उनके पुत्र बाबा लहणा सिंह भी उन्हीं की तरह अमीरी और पीरी में पूर्ण हुए | यह सचमुच राजा जनक की तरह महान ग्रहस्थ होकर भी पूर्णतया ज्ञान निष्ठ थे | उनके चार पुत्र हुए प्रताप सिंह विशन सिंह नंदसिंह और भगवान सिंह | इनमें सबसे बड़े सरदार प्रताप सिंह परिवार की बहुत बृद्धि हुई आज संभवता सैकड़ों व्यक्ति इनके परिवार में हैं | क्या और वह भी अच्छे सुशिक्षित सदाचारी एवं धन धान्य संपन्न हैं | सभी की साधु सेवा में अत्यंत रूचि है तथा सभी भजन ध्यान में प्रीति रखते हैं | हमारे सरदार प्रताप सिंह जी के पांच पुत्र और तीन कन्याएं हुई | इनमें सबसे छोटे सरदार दीवान सिंह जी ही हमारे चरित्र नायक हुए | आप अपने सभी भाई बहनों में सबसे छोटे थे | भाइयों में सबसे बड़े सरदार इंद्रजीत सिंह का शरीर अब धराधाम में नहीं है | उनसे छोटे सरदार नगीना सिंह जी अपने पैतृक गांव गंधवाल में रहकर ही कृषि का व्यवसाय करते हैं | उनसे छोटे सरदार बहादुर भगत सिंह जी इंजीनियर थे | अब आप रिटायर्ड हैं यह बड़े सच्चे सदाचारी और नियम निष्ठ महानुभाव हैं | तथा एक सच्चे सिख की तरह अपने संप्रदाय अनुसार भजन ध्यान में तत्पर रहते हैं | इनके कोई पुत्र नहीं है केवल तीन कन्याएं हैं इनका हमारे श्री महाराजजी में बड़ा गंभीर भाव है | अभी सन 1945 की बात है श्री महाराज जी प्राय: तीन मास होशियारपुर में रहे थे वहां श्री महाराज जी की कथा में सरदार भगत सिंह उनकी पुत्री और एक दोहित्री भी आती थी जिस समय में मां बेटी प्रणाम करती इन्हें गाढ समाधि सी हो जाती थी 3 घंटे तक कथा में बैठे रहने पर भी इन्हें चेत नहीं होता था पीछे बहुत देर में सावधान होने पर घर आती थी | किंतु जिन का आपके जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है वह है आपके चौथे भाई सरदार हीरा सिंह जी | आप M•A•हैं तथा अंग्रेजी संस्कृत गुरमुखी बांग्ला फारसी उर्दू और हिंदी आदि कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान रखते हैं | पहले आप एक हाई स्कूल में हेड मास्टर थे अतः सामान्यतया मास्टर साहब बोलकर प्रसिद्ध हैं | आप सरदार बहादुर सिंह सरदार भगत सिंह जी तथा सरदार इंद्रजीत सिंह का परिवार होशियारपुर में ही रहते हैं | वहां इनके बड़े-बड़े मकान हैं | मास्टर साहब अब रिटायर हो चुके हैं | मैंने तो आप को उस स्थिति में भी देखा था | उस समय भी आप इस स्कूल टाइम के अतिरिक्त हर समय अभ्यास और स्वाध्याय में ही लगे रहते थे | अब तो निरंतर परमार्थ चिंतन ही करते रहते हैं | अपने सांप्रदायिक ग्रंथों के अतिरिक्त आपने अनेकों शास्त्र पुराण एवं अन्यान्य अध्यात्मिक ग्रंथों का भी अच्छा अनुशीलन किया है | आज 70 वर्ष की आयु होने पर भी आपका स्वास्थ्य बहुत अच्छा है | तथा सब इंद्रियां भी ठीक ठीक काम करती हैं इसका कारण आपका संयत जीवन युक्त आहार विहार और नियमित व्यायाम ही है | आपको औषधियों का भी अच्छा ज्ञान है अतः कभी-कभी परोपकारार्थ किसी को कोई अचूक औषधि भी बता देते हैं | यह ग्रहस्थाश्रमी होते हुए भी बड़े मस्ताने महापुरुष हैं | श्री महाराज जी ने बाल्यावस्था में इन्हीं से आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की थी अतः आप इन में गुरू भाव रखते हैं | और अब भी जब मिलते हैं तो संकोच बस इन के सामने नहीं बोलते | यह सब होते हुए भी मास्टर जी का आपके प्रति बड़ा ऊंचा भाव है इसका परिचय एक घटना से मिल सकता है अतः यहां उसका उल्लेख करना अप्रासंगिक नहीं होगा -सन 1920 में श्री महाराज जी होशियारपुर गए थे उस समय मैं भी आपके साथ था | एक दिन मास्टर जी ने आपसे कहा कल भोजन हमारे घर पर करना | ठीक 11:00 बजे आ जाना और इस को भी साथ ले आना | आप बोले बहुत अच्छा जब मास्टर जी चले गए तो कहने लगे मुझे इनसे बड़ा डर लगता है परंतु करें क्या जाना ही पड़ेगा | दूसरे दिन थी 11:00 बजे हम घर पहुंचे वहां बड़ा ही विचित्र दृश्य देखा | मास्टर साहब भाव आवेश से उन्मत्त प्रायः हो रहे थे | उनके हाथ में जल से भरा हुआ एक कलई का लोटा था और उनके भतीजे के हाथ में एक कलई का तसला था तथा मास्टर साहब के पुत्र लखबीर सिंह जी एक सतोलिया लिए हुए थे | मास्टर साहब महाराज जी के चरण धोना चाहते थे किंतु महाराज जी संकोच से गड़े जाते थे | आप बराबर पीछे हटते जाते थे यहां तक कि हटते हटते दरवाजे तक आ गए किंतु मास्टर जी अब भी चरणों को धोने की चेष्टा कर रहे थे | तब विवश होकर आपने बड़े जोर से कहा आप क्या कर रहे हैं | अब मास्टरजी होश में आए और लज्जित से होकर जल की झारी हरवंत सिंह जी को देकर एक और हो गए | महाराज जी हरवंत सिंह जी से भी चरण धुलवाने में संकोच करने लगे | कल मास्टर जी ने मीठी सी डांट बतलाते हुए कहा अब आप क्या करते हैं यह तो आपसे छोटे ही हैं | तब आप चुपचाप खड़े हो गए उन दोनों नव युवकों ने अपने संत पितृव्य के चरण पखारे और उन्हें तौलिए से पहुंचकर खड़ाऊं पहना दीं | प्रिय पाठक वह दृश्य भी अजीब था एक ओर तो मास्टर साहब भावावेश में आंसू बहा रहे थे और वह दोनों नवयुवक भी प्रेम से पागल से हो रहे थे | दूसरी ओर हमारे कौतुकी सरकार भी एक दम शांत और गंभीर मुद्रा में खड़े थे | बस आप बरामदे में जहां भोजन के लिए आसन बिछे थे बैठ गए और पास ही मैं भी एक और बैठ गया | वहां तो अद्भुत दृश्य था सब घर पागल सब घर पागल सब घर दीवाना | भोजन बनाने वाली मैया आपकी बड़ी बहने तथा परिवार की दूसरी देवियां गुरुओं की वाणियों का पाठ कर रही थी तथा खुले शब्दों में नाम प्रेम एवं भक्ति की भिक्षा मांग रही थी | उन लोगों के भाव को देखकर ऐसा प्रतीत होता था कि उनके मन में ऐहिक संबंध का तो लेशमात्र भी नहीं है | उनका तो आपके प्रति पूर्णतया भगवत भाव था | मैं तो उनका दिव्य भाव देखकर दंग रह गया | आपने बड़ी गंभीरता से भोजन किया और चुपचाप वहां से चले आए एक शब्द भी मुंह से नहीं निकाला किंतु उस समय आप एक दिव्य भाव से मस्त हो रहे थे | मास्टर जी सन 1904 में ही हैड मास्टर हो गए थे और 28 वर्ष नौकरी करके सन 1932 मैं रिटायर्ड हुए | आपको प्रायः सौ रुपए पेंशन के मिलते हैं तथा कुछ रुपया आपके पास था | इसी पूंजी से आप सादा जीवन व्यतीत करते हुए निरंतर ध्यान-भजन में लगे रहते हैं | आपका साधु सेवा का ढंग बड़ा ही विचित्र है जहां जैसी आवश्यकता समझते हैं उसके अनुसार किसी साधू की कुटी में बादाम किसी की कुटी में घी कहीं कंबल और कहीं चादर आदि चुपचाप रख आते हैं | महात्मा लोग समझ लेते हैं या काम मास्टर साहब का है | (महाराज जी के गुरु) श्री सच्चिदानंद आश्रम में स्वामी जी के सामने से ही आप पच्चीस प्रतिमास देते रहे हैं | आप के एकमात्र पुत्र सरदार लखबीर सिंह जी ग्रेजुएट हैं | वह स्वतंत्र नौकरी करके अपना निर्वाह करते हैं | इस समय उनकी आयु प्राय: 30 वर्ष की है परंतु अभी तक उन्होंने विवाह नहीं किया और न करने का विचार ही है | वह अच्छे संयमी और विचारशील नवयुवक हैं | मैंने इन में बाल्यावस्था से ही बड़े दिव्य गुण देखे हैं | एक बार सन 1928 में होशियारपुर में बड़ा उत्सव था | उसमें बांध प्रांत के सौ सवा सौ भक्त गए थे | आश्रम में बड़ी धूमधाम से कथा कीर्तन एवं व्याख्यान आदि होते थे | उस समय बालक लखबीर की आयु प्रायः 12 साल की थी | उसका अत्यंत गौर वर्ण था और सिर पर सिख संप्रदाय अनुसार सुंदर केशपाल था | जिस समय वह कीर्तन करते हुए भावावेश में उन्मत्त होकर नृत्य करने लगता था उसके केश खुल कर मुखमंडल पर बिखर जाते थे और नेत्र भाव उन्माद से निर्निमेष रह जाते थे | उस समय तो ऐसा प्रतीत होता था मानो साक्षात बाल गौर ही त्रिभुवन मोहन नृत्य कर रहे हैं | नृत्य करते करते वह मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर जाता और घंटो तक भाव समाधि में निमग्न रहता था | उस समय उसे साक्षात श्री श्याम सुंदर और श्री किशोरी जी के दर्शन होने लगते थे | इसी प्रकार इसे और भी अनेकों सात्विक विकार होते थे | पढ़ने लिखने में भी इसकी बुद्धि सदा से बहुत प्रखर है ही | उस अल्प आयु में ही इसने आश्रम के बीच वाले चौबारे में जहां श्री महाराज जी ठहरे थे वैज्ञानिक ढंग से सब सामान इकट्ठा करके बिजली का प्रकाश कर दिया था | यह देखकर महाराज जी भी दंग रह गए थे | तब आपने पूछा कि लखबीर यह विषय तो बीएससी में पढ़ाया जाता है तूने कहां से सीख लिया | इस पर इस ने कहा कि एक बार पिताजी ने मुझे बतला दिया था इस प्रकार आप के सभी भाई बड़े योग्य और साधन संपन्न हैं | इन्ही की तरह तीनों बहनों की भी स्थिति बहुत ऊंची थी | यह तीनों भी आपसे बड़ी ही थी उनके नाम क्रमशः परमेश्वरी देवी इंदो देवी और द्रोपदी देवी थे | इनमें द्रोपदी देवी का शरीर अब इस धराधाम में नहीं है किंतु उनका परिवार खूब भरा पूरा है इन द्रौपदी देवी जी का जीवन बड़ा अलौकिक था ध्यान भजन में इनकी स्थित बहुत ऊंची थी इनके जन्म काल में आपके माता पिता को ऐसा स्वप्न हुआ था कि साक्षात श्री जानकी जी ने ही इन के रूप में अवतार लिया है | श्री महाराज जी इनकी अनेकों विचित्र घटनाएं स्वयम वर्णन किया करते हैं | और यह भी कहते हैं कि इन की स्थिति मुझसे बहुत ऊंची थी | यह साक्षात शक्ति का ही अवतार थीं | आपके सबसे बड़े भाई सरदार इंद्रजीत सिंह की पत्नी भी अच्छी पढ़ी-लिखी और व्यवहार तथा परमार्थ दृष्टि से उच्च कोटि की महिला थी | उनका अध्यात्मिक ज्ञान बहुत बड़ा चढ़ा था वह ग्रह कार्य से अवकाश पाने पर निरंतर भजन ध्यान एवं स्वाध्याय में ही लगी रहती थी |हमारे श्री महाराज जी कहा करते हैं कि मुझे बचपन में आपने और मास्टर साहब ने ही भजन ध्यान में लगाया था | यह रात्रि के 3:00 बजे ही मुझे उठा कर ध्यान में बैठा देती थीं | उनके पुत्र सरदार हनवंतसिंह भी बड़े सदाचारी और साधु से भी सज्जन हैं | यह एम ए पास है और एक कॉलेज में प्रोफ़ेसर हैं | अभी तीन-चार वर्ष हुए इनके एक युवा पुत्र की मृत्यु हो गई थी किंतु फिर भी इन का धैर्य अटल रहा उस समय भी इनकी शांति में कोई विशेष अंतर नहीं देखा गया | इस प्रकार यह इस प्रकार यह सारा परिवार ही बहुत ऊंचा है | इसमें सभी लोग अच्छे पढ़े-लिखे साधन संपन्न साधु देवी और सदाचारी हैं | इनकी आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी है तथा सभी लोग नियमित व्यायामशील स्वस्थ और दीर्घजीवी हैं | प्रायः 200 वर्ष से यह सिख संप्रदाय में दीक्षित हैं और अपने को छत्रिय बताते हैं | तथापि इन में किसी प्रकार का सांप्रदायिक पक्षपात नहीं है | सनातन धर्मानुसारी कर्म और उपासना का भी यह खूब आदर करते हैं | गुरुओं में इनकी अटूट श्रद्धा है और उस श्रद्धा के कारण ही इसमें वंश परंपरागत योग संपत्ति पाई जाती है | सचमुच यह तो योगियों का ही कुल है | ऐसे योगियों के कुल में श्री महाराज जी जैसे महापुरुष का आविर्भाव होना सर्वथा उपयुक्त ही था |

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