(1) भगवत्प्रेम के बिना बैरागय नहीं होताऔर सांसारिक बैराग्य के बिना भगबान से प्रेम भी नहीं होता है/
(2) साधु को भिक्षा माँग कर ही अपना निर्बाह करना चाहिये, किसी एक स्थान पर बँध जाने सेाधुता नष्ट हो जाती है , धनिकों के अन्न में अनेक प्रकार के दोष होते हैं, उससे बुद्धि नष्ट हो जती है/
(3) साधु को मधूकरी के अलावा कुछ भी मांगने से शरीर में रहने वाले पाँच देवता छोड़ कर चले जाते हैं, ये पाँच देवता ह्री, श्री, धी, ज्ञानऔर गौरव होते हैं/
(4) साधु को भूख लगने पर रोटी माँग लेनी चाहिये,मधूकरी वृत्तिसे रोटी मांगना तो गृहस्ती को कृतार्थ करना होता है/
(5) साधक को स्त्रियों से एक दम दूर रहना चाहिये/
(6) भोगी पुरुषोम का संग महात्मा के मन को खराब कर देता है, अत: ऎस्व लोगों से दूर ही र्हना चाहिए/
(7) सुने न काहू की कही, कहे न अपनी बात/
नारायण बा रूप में मगन रहे दिन रात//
(8) परमार्थ साधक को तीन बातें अति अनिवार्य हैं ,
अ– दुनियाँ का चिन्तन ना करे/
ब– दुनियाँ की बात ना करे/
स– दुनियाँ की क्रिया ना करे/
(9) दरिद्री बो है,जो विषयों में फसा हुआ है और धनी वह है जिसे किसी भी चीज की इच्छा नहीं है/
(10) संसारी बातों से सुख या शान्ति मिल जायेगी– ऎसा सोचना मूर्खता है/
(11) सच्चे वैराग्यबान को जो आनन्द प्राप्त होता है वह और किसी को प्राप्त नहीं हो सकता है, व्रह्मादिक भी उस आनन्द को तरसते हैं/
(12) इन्द्रियों से वैराग्य होने पर भाव होता है तथा भाव से वैराग्य होने पर ज्ञान होता है/
(13) चित्त का विकार तभी जा सकता हैजब कि शरीर मात्र को मल मूत्र का थैला न समझे /
(14) जन्म जन्मान्तर से हमारा विषयों में अनुराग है, इसी लिये भगवान में अनुराग नहीं होता है/ भगवान में पूर्ण अनुराग होते ही संसार से छुटकारा हो जाता है/ जैसे निद्रा का अन्त और जागरण दोनों एक साथ ही होते हैं अथवा रात्रि का अन्त और दिन का प्रारम्भ दोनों एक साथ ही होते हैं/
(15) किसी बस्तु से दूर चले जाना बैराग्य नहीं है, हृदय में उसके प्रति राग न रहना ही बैराग्य है/
(16) जगत का कोई भी पदार्थ नित्य नहीं है, धन, विद्या, बुद्धि, गुण, गौरव आदि सभी मृत्यु के साथ धूल में मिल जाते हैं/
(17) लँगोटी का त्याग देना देह त्याग हैऔर पंच कोशों से ऊपर उठ जानागेह त्याग है/
(18) किसी भी पदार्थ में ममत्व बुद्धि न रख कर सब को ईश्वर की समझते हुये सब की रक्षा करो और संभाल कर रखो, इससे उसके बियोग में दुख नहीं होगा/
(19) प्रतिष्ठा ने ही जीव को भगबान से दूर कर रखा है/
(20) इस जन्म का लाभ तो यही है कि जीव जन्म मरण के चक्कर से छूट जाय/
(21) दृश्य में प्रीति न रखना असली बैराग्य है/
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