वचनामृत श्री हरिबाबा जी के वचनामृत

सेवा और प्रार्थना

" श्रीहरि "

जिस प्रकार

   आकाश से गिरा हुआ जल

            किसी न किसी रास्ते से

      होकर समुद्र में पहुँच ही जाता है

उसी प्रकार

निःस्वार्थ भाव से की गई

        “सेवा और प्रार्थना” 

        किसी न किसी रास्ते से

        ईश्वर तक पहुँच ही जाती है

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