वचनामृत श्री आनंदमई माँ जी के वचनामृत श्री हरि

मां के उपदेश ने जिज्ञासु की समस्या का समाधान कर दिया।

" श्रीहरि "

श्री मां आनंदमयी काशी के आश्रम में सत्संग कर रही थीं। बंगाल के एक शिष्य उनके पास पहुंचे। बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, ‘मां, मैं वर्षों से प्रतिदिन अपने इष्टदेव से प्रार्थना कर कुछ मांगता हूं, किंतु लगता है कि भगवान निष्ठुर हैं। प्रार्थना को और अधिक प्रभावी बनाने का क्या उपाय है?’

मां ने पूछा, ‘तुम प्रार्थना में भगवान से क्या मांगते हो?’ उसने बताया, ‘मैं औरों की तरह धन-संपत्ति चाहता हूं। मेरी आकांक्षाओं की पूर्ति हो, मैं ऐसी कामना करता हूं।’ मां ने पूछा, ‘क्या तुम्हारी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती? क्या तुम्हारे पास रहने को मकान नहीं है? क्या तुम्हें भोजन नहीं मिलता? मानव की मुख्य आवश्यकता रोटी, कपड़ा और मकान है। यदि इन वस्तुओं का अभाव हो, तो मैं उनकी पूर्ति का साधन बता सकती हूं।’

उस व्यक्ति ने कहा, ‘मां, मुझे ऐसा कोई अभाव नहीं है, किंतु पड़ोसी के ऐश्वर्यपूर्ण जीवन को देखकर मन में भाव उठता है कि मेरा जीवन भी उस जैसा ही हो।’

मां ने कहा, ‘वत्स, तुम तो बड़े भाग्यवान हो कि ईश्वर तुम्हारी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहा है। प्रार्थना करके भगवान को इसके लिए धन्यवाद दिया करो, कुछ मांगकर उन्हें परेशान क्यों करना चाहते हो? यदि कुछ मांगना ही हो, तो उनसे अपने लिए अच्छी बुद्धि मांगो, ताकि अपने कर्तव्यों का पालन कर सको। यह मांगो कि काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि दुर्गण भगवत् भक्ति में बाधा न डालने पाएं। आकांक्षाएं असीमित होती हैं, इसलिए सात्विक जीवन बिताने का वरदान मांगो।’

मां के उपदेश ने जिज्ञासु की समस्या का समाधान कर दिया।

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