श्री उडिया बाबा जी के वचनामृत
" श्रीहरि "

सच्चे वैराग्यबान को जो आनन्द प्राप्त होता है वह और किसी को प्राप्त नहीं हो सकता है, व्रह्मादिक भी उस आनन्द को तरसते हैं

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