श्री उडिया बाबा जी के वचनामृत
" श्रीहरि "

जन्म जन्मान्तर से हमारा विषयों में अनुराग है, इसी लिये भगवान में अनुराग नहीं होता है/ भगवान में पूर्ण अनुराग होते ही संसार से छुटकारा हो जाता है/ जैसे निद्रा का अन्त और जागरण दोनों एक साथ ही होते हैं अथवा रात्रि का अन्त और दिन का प्रारम्भ दोनों एक साथ ही होते हैं

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