भक्त परिकर श्री हरि

श्रीहरेकृष्णजी

" श्रीहरि "

ब्रह्मचारी श्रीहरेकृष्णजी

श्रीहरेकृष्णजी-ऊपरकहा गयी है कि नर्सिंग होम में श्रीहरेहृश्णजी आपकी सेवा में रहते थे। ब्रह्मचारी रामस्वरूपजी होषियारपुर में बीमार हो गये थे। अतः उन्हे छोड़कर आपने इन्हें अपनी सेवा में नियुक्त किया था। इनका जन्म पूर्व बंगााल में, जिसे बंगला ’’देष‘‘ कहते हैं, हुआ था। बाल्यावस्था में इन्होंने भावुक भक्तकों के मुख से सेनस था कि भागवान् श्रीवृन्दावनधाम में रहते हैं। अतः भगद्यर्षनकी लाल सासे ये थौड़ा साखर्च लेकर वृन्दावन वले आए। यहाॅं अपने एक सम्बन्धी के घर ठीर-कर ये मन्दिरों में भगद्यर्षन औा आश्रमों में कथा-श्रवण करने लगे। इाी निमित्त से ये स्वामी श्रीअखण्डानन्दजी की कथाएॅं भी आने लगे। आजीविका के लिए ये सिलाई का काम करने लगे। धीरे-धीरे श्रीमहाराजजीके सत्संग में भी इनका आर्कशण हो गया। वे बंगला ग्रन्थ सुनाते समय कभी-कभी इनसेकिसी षब्द का अर्थ पूछ लेते थे।
इस प्रकार सम्पर्कका आरम्भ हुआ। इन्हें सेवा करने की विषेश अभिरूची थी, अतः धीरे-धीरे ये श्रीमहाराजजी की कोई छोटी मोटी सेवा भी करने लगे। ब्रह्मचारी रामस्वरूप जी इनसे कुछ सीयोग लेने लगे। परन्तु दोनों की रुचि, योग्यता और पद्धति में बहुत अन्तर था। अतः पिछे कुछ सघंर्श रहने लगा। तब श्रीमहाराजजी ने दोनों के कार्य क्षेत्र का विभाजन कर दिया। इन्हें कुटिया की सेवा मिली। और ब्रह्मचारीजी को कुटिया से बाहर की।

श्रीहरेकृष्णजी बड़े सुषील, सहिश्णु और कार्य कुषल व्यक्ति हैं ये बड़े कलाकुषल भी हैं। सिलाई के अतिरिक्त ये चित्रकला-मूर्ति निर्माण, पाकविद्या ओर परिश्कार में भी विख्यात है। विषेश अवसरों पर ये सुन्दर क्तंाकियाॅं सजाते है। ये महाराजजी के पास आये हुए उपहारों की यथोचित व्यस्था करते थे। उनके नाम आये हुए पत्रों के उत्तर थे, समागत सन्तों के स्वागत-सत्कारी व्यवस्था करते थे और कुटिया का परिश्कार तथा श्रीमहाराजजी के नीचातिनीच सेवा भी करते थे। श्रीमीाराजजी इनसे बहुत प्रसन्न थे और कई बार अपने श्रीमुखसे इनो गुणों की प्रषंसा किया करते थे। उनकी सेवा में जितने लोग रहे उन्में से कोई भी उन्हें इतना प्रसन्न नहीं कर सके।

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