ब्रह्मचारी श्रीरामस्वरूपजी का सेवा में आगमन
श्री महाराज जी ने एक वर्ष तक भिरावटी में ही रहने का निश्चय किया। यहाॅं अन्य कार्यक्रमो के अतिरिक्त आप कई लोगो के साथ मिलकर गोष्ठी करते थे। उस गोष्ठी के प्रमुख सदस्य थे पंडित केषवदेव, पंडित भगवद्यत्त, पंडित जयषंकर और पंडित रामदत्त। सब लाग भगवा की विभिन्न टीकाएॅं ले कर और प्रत्येक श्लोक का तुलनात्मक विचार किया जाता था। संायकाल में सबके साथ मिलकर आप कबड्डी, घोड़ा-जमालषाही, चील झपट्टा आदि कई प्रकार के स्वास्थ्यवर्धक खेल खेलते थे।
यहीं आपके पास ब्रह्मचारी रामस्वरूपजी आये। ये जब सेे आये तब से आप ही की सेवा में सलंग्न रहे। ये जिला कानपुर के उन्नाओ नामक गाॅंव के रहने वाले थे। पढ़े लिखे कुछ नहीं थे, गौए चाराया करते थे। किन्तु सरल प्रकृति के थे। इनके एक साथी संन्यासी हो गये। अब वे दण्डि रूवामी रामाश्रयजी कहलाते थे। ये उनके पास आये और एक रात्रि वहीं रहे। इतने से ही इनकी प्रकृति में बढ़ा परिर्वतन हो गया। इन्हें अश्रु, पुलक, स्वेद आदि कई सात्त्विक भाव होने लगे। और आप हमेशा हमेश के लीये श्री महाराज जी के साथ हो लिये
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