हमारे चरित नायक पूज्यपाद स्त्री श्री 108 श्री हरि बाबा जी महाराज से बाबू हीरालाल जी तथा इनके परिवार का बहुत संपर्क रहा है अतः यहां संक्षेप में बाबू हीरालाल जी का परिचय दे देना अप्रासंगिक नहीं होगा | जिला बदायूं (अब संभल ) मैं गंगा जी से दो 3 मील दूर गवां नाम का एक संपन्न गाँव है | यहां राजपूत और वैश्यों के कई शक्तिशाली घराने हैं | इन्हीं घरानों में एक घराना अग्रवाल वंशीय लाला कुंदन लाल का है | यह तीन भाई थे बड़े लाला चेतराम तथा छोटे लाला गुलाबराय इनमें सबसे सुप्रसिद्ध साधु सेवी मझले लाला कुंदनलाल ही थे | ऋषिकेश हरिद्वार से लेकर कानपुर तक के प्राय: सभी विरक्त महात्मा इनका नाम जानते थे | उस समय इस ओर राम घाट से गढ़मुक्तेश्वर तक की गंगा तट पर कई बड़े विरक्त विद्वान निष्ठावान महात्मा रहते थे | उनमें बंगाली बाबा और शास्त्र आनंद जी का उल्लेख तो पहले किया ही जा चुका है वह एरिया में रहते थे | अनूपशहर में स्वामी उग्रानंद जी और मौजानंद जी बड़े ही मस्ताने और ब्रह्मनिष्ठ महात्मा थे | भगवानपुर में दक्षिणीस्वामी तथा बाबा हीरादास जी थे | हीरा दास जी की उस समय के विरत और विद्वानों में बड़ी धाक थी | मांडू में स्वामी अखंडानंद जी तथा पंडित दौलतराम जी थे | यह दौलत राम जी ही बाद में अच्युत मुनि नाम से प्रसिद्ध हुए | रामघाट की और कर्णवास की झाड़ियों में हमारे श्री उड़िया बाबा जी महाराज थे जो अपनी कठोर तपस्या विरक्ति और सिद्धियों के लिए उस समय भी बहुत प्रसिद्ध थे | गंगा जी की दूसरी और खादर में दीपपुर के पास बाबा सेवादास नाम के एक सिद्ध महापुरुष रहते थे | तथा गवां में मौनी बाबा अवधूत जी तथा प्रज्ञाचक्षु बाबा लक्ष्मण दास जी थे | या सभी बड़े अलौकिक महापुरुष थे इनमें से एक-एक का परिचय लिखा जाए तो बहुत अधिक विस्तार हो जाएगा और हमारा मुख्य प्रसंग बीच में ही लुप्त हो जएगा | लाला कुंदन लाल जी का और लाला कुंदन लाल जी के बड़े भाई चेतराम जी के पुत्र बाबू हीरा लाल जी का इन सभी महात्माओं से बहुत घनिष्ठ संबंध थाा | वह तन मन और धन के द्वारा बड़ी तत्परता से इन सभी महानुभावों की सेवा किया करते थे लाला कुंदन लाल जी तो प्रायः भेरिया में रहकर स्वयं भोजन बनाकर महात्माओं को खिलाते थे तथा वस्त्र आदि से भी उनका यथेष्ट सत्कार करते थे | उनके 3 पुत्र किशोरीलाल मुरारीलाल और बाबूलाल गवां में रहकर अपना कारोबार चलाते थे तथा वहां आने वाले महात्मा और भक्तों की सेवा करते थे | छोटे लाला गुलाब राय जी के एकमात्र पुत्र जानकी प्रसाद जी थे यह भी आगे चलकर बड़े वीर उदार और साधु सेवी सिद्ध हुए |
हमारे चरित नायक के यह अनन्य भक्त थे और उनकी प्रत्येक आज्ञा का प्राण प्रण से पालन करते थे्| बड़े लाल चेतराम जी के 3 पुत्र थे | रघुवरदयाल चंद्र सेन और हमारे प्राण बंधु बाबू हीरालाल जी | हीरालाल जी को तो उस समय का जनक कहें तो भी अत्युक्ति न होगी | जो स्थान श्री भगवान राम की लीला में भरत जी का था और भगवान श्री कृष्ण की लीला में उद्धव और गौर लीला में श्रीवास पंडित जी का था वही इस्थान श्री हरि बाबा जी महाराज की लीला क्षेत्र में बाबू हीरालाल जी का है | बाबू हीरालाल जी संस्कृत अंग्रेजी और फारसी के विद्वान थे उर्दू और फारसी में सुंदर कविता भी करते थे | आपने इस स्कूल छोड़ते ही व्यापार आरंभ कर दिया था पिताजी ने वयस्क होते ही तीनों पुत्रों में अपनी संपत्ति को बांट दिया था | इससे आपके हिस्से में प्रायः ₹10000 आए थे किंतु अपने बुद्धि कौशल से उन्होंने 6 वर्ष में ही उनसे एक लाख रुपया उपार्जन कर लिया था | कुल परंपरा के अनुसार आपका विवाह बाल्यवस्था में ही हो गया था | किंतु ग्रहस्थ होते हुए भी आप एक प्रकार से ब्रम्हचारी ही थे | बाबू हीरालाल जी को कसरत और कुश्ती का शौक था तथा बाल्यावस्था से ही साधु सेवा में भी अत्यंत अनुराग था गवां में उस समय साधु महात्माओं के लिए सब प्रकार की सुविधा थी इसलिए कोई-न-कोई अच्छे विरत और निष्ठावान महात्मा वहां बने ही रहते थे | आपको भी जब अवकाश मिलता तो उन संतो के पास जाकर सत्संग का लाभ लेते थे | एक बार बाबू हीरालाल जी को स्वामी सहजानंद नाम के एक महात्मा मिले वह हठ योग में पारंगत थे | बाबू हीरालाल को भी बाल्यावस्था से ही युग का शौक था परंतु कोई योग्य गुरु नहीं मिले थे स्वामी सहजानंद के मिलने पर उस अभाव की पूर्ति हो गई और इन्होंने हट योग की साधना आरंभ कर दी | अभ्यास आरंभ करने पर आपने अखंड ब्रम्हचर्य की प्रतिज्ञा की तथा आहार विहार का भी बड़ा संयम रखा उन दिनों आप केवल मूंग चावल और थोड़ा सा घी दूध ही लेते थे | इस प्रकार आप बड़ी तत्परता से अभ्यास में लग गए | तेजस्वी पुरुष जिस काम में भी लगते हैं उसी में अपनी सारी शक्ति लगा देते हैं हमारे महाराज जी भी महापुरुष का एकमात्र यही लक्षण किया करते हैं कि वह जिस काम को करता है उसी में चाहे वह बड़ा काम हो या छोटा अपना सारे का सारा चित्त लगा देता है | बाबू हीरालाल जी ने भी इस समय अपना सारा गृह कार्य छोड़कर योगाभ्यास में ही पूरा समय लगा दिया | अतः थोड़े ही दिनों में उन्हें अच्छी सफलता प्राप्त हो गई | उन्हें हठयोग के नेति धोती आदि षटकर्म सिद्ध हो गए और दो-तीन घंटे का कुंभक भी होने लगा | इससे उनकी ध्यान में भी उत्तरोत्तर वृद्धि होने लगी | किंतु अंत में योगी रोगी भक्त बावले ज्ञानी बड़े निखट्टू कर्मकांडी ऐसे डोले ज्यों भाड़े के टट्टू वाली कहावत चरितार्थ हुई इनकी योग साधना में भी विघ्न उपस्थित हुआ | जिस समय षट कर्म करने के बाद प्राणाज्ञयाम करते और उसके पीछे ज्यूं ही कुंभक होने लगता कि उनका प्राण कभी तो ठीक गति से उर्ध्वगामी होता और कभी सुषुम्ना मार्ग से न चढ़ कर बेढंगे तौर पर किसी और नाड़ी द्वारा मस्तिष्क में चढ़ जाता | उससे भी पागल से हो जाते और उन्हें महान कष्ट होता था | यहां तक कि कभी-कभी तो वे मूर्छित हो जाते थे एक बार उनकी मूर्छा इतनी बड़ी की नाड़ी की गति भी रुक गई और ह्रदय की धड़कन भी बंद हो गई | वे मृतक के समान निष्चेट अवस्था में पृथ्वी पर पड़े थे जब कई घंटे इसी प्रकार निकल गए कब घर वालों ने समझा कि इनके प्राण पखेरू उड़ गए हैं और वह सब इन को ले जाने का प्रबंध करने लगे | इसी समय करुणा आगार भक्तवत्सल भगवान श्री हरी के हृदय में पीड़ा हुई और वह अपने भक्त की रक्षा करने के लिए वहां श्री महाराज जी के रुप में आ पहुचे | यद्यपि इस समय आपके वहां आने की कोई संभावना नहीं थी तथा फिदेल योग से आपका पहुंचे और गौ वत्स की तरह हीरालाल हीरालाल पुकारते हुए ऊपर अ्ट्टे पर चढ़ गए | जाकर देखा कि हीरालाल तो मृतक की तरह पृथ्वी पर पड़े हैं | और उनका शोकमग्न परिवार उनकी श्मशान की यात्रा की तैयारी कर रहा है | श्री महाराज जी को देखते ही सब लोग एक और हट गए और प्रणाम करने लगे यद्यपि उस समय लोग इनका विशेष महत्व नहीं जानते थे तो भी साधु सेवी थे और इनमें श्रद्धा रखते थे तथा यह भी जानते थे कि बाबू जी से इनका घनिष्ठ संबंध है | वहां का सब रंग ढंग देखकर आप आवेश में आ गए और अंग्रेजी में व्याख्यान सा देने लगे उस व्याख्यान का आशय यही था कि यह तुम्हारे घर में एक महान योगी उत्पन्न हो गया है यह तुम्हारे सारे कुल का उद्धार करेगा इसके द्वारा जगत का बड़ा उपकार होगा यह भस्म में रखे हुए अंगारे के समान एक प्रच्छन्न महापुरुष है | तुम लोग एक योगी की गति को क्या समझ सकते हो | वह किस तरह मरता है और किस तरह जीता है तुम्हें क्या पता | बस भलाई इसी में है कि तुम सब अभी यहां से चले जाओ नहीं तो अच्छा नहीं होगा तुमने एक योगी की अवज्ञा रूप घोर अपराध किया है | इसलिए तुम सब चले जाओ | इसी तरह आपने बहुत कुछ कहा उस समय आवेश के कारण आप अपने भक्तों के गुणों का वर्णन करते नहीं अघाते थे | इससे देश अब बेचारे तो डर के मारे सब के सब एक दम खिसक गए | और श्री महाराज जी ने बहुत गंभीर स्वर में ओंकार की ध्वनि की तथा बाबूजी के सर पर हाथ रखा |बस वह एकदम जैसे सो कर उठे हो श्री हरि श्री हरि का उच्चारण करते उठ बैठे | आंख खोलकर देखा तो सामने श्री महाराज जी खड़े थे अतः उठकर प्रणाम किया और बैठने के लिए आसन दिया | इस समय तो यज्ञ पर हीरालाल जी श्री महाराज जी के स्वरुप को नहीं जानते थे तथा पर श्री महाराज जी तो उन्हें पहचानते ही थे आप आसन पर बैठ गए और हंस कर बोले भूख के कारण मेरे प्राण निकल रहे हैं और तुम सुख से सोए पड़े हो | भला यह भी कोई सोने का समय है इस बात को सुनकर बेचारे हीरालाल जी बड़े लज्जित हुए और जल्दी से कुछ भोजन लाकर आपको खिलाया तथा क्षमा प्रार्थना करने लगे | श्री महाराज जी तो भोजन करके चले गए परंतु यह सारा दृश्य बाबू जी के चचेरे भाई लाला जानकीप्रसाद एक ओर छिप कर देख रहे थे |
उनका बाबूजी से घनिष्ट प्रेम था यह लौकिक चमत्कार देख कर उन्होंने मन ही मन श्री महाराज जी के चरणो में आत्म समर्पण कर दिया और उनके चले जाने पर सब वृतांत बाबूजी को सुनाया | तब उनको अपना परम सुहृद जानकर बाबू जी ने उनसे कहा मैं सचमुच ही आज किसी दूसरे लोग में चला गया था और वहां से लौटने की भी इच्छा नहीं हो रही थी परंतु यह महापुरुष यह कहकर कि वह मुझे वहां बुलाकर आप यहां चले आए तुम्हें तो अभी संसार का बहुत काम करना है मुझे बलात्कार से ले आए हैं यह कह कर बाबू जी फूट-फूट कर रोने लगे कि भाई मैंने तो इन चरणों में बड़े बड़े अपराध किए हैं मैं तो अपने को ही इनसे श्रेष्ठ समझता था | मुझे तो यह अभिमान था कि मैं बड़ा योगी हूं ज्ञानी हूं विद्वान हूं परंतु आज मेरे इस अभिमान पर वज्राघात हुआ यह क्या वस्तु हैं यह तो मैं अब भी नहीं समझ पाया हूं | अच्छा मैं उनके स्वरूप को समझूं या ना समझूं परंतु वह मुझे अवश्य पहचानते हैं कि मैं कितना नीच हूं किसी से अपनी पतितपावन ता का परिचय देने के लिए उन्होंने आज मुझे पुन्हें जीवन दान दिया है |
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