Shri Hari जीवन परिचय जीवन परिचय(श्रीलालता प्रसाद जी) श्री हरि संकलनकर्ता

हरिनाम वितरण page.15

" श्रीहरि "

हरिनाम वितरण

गवां में आने पर आपकी भगवत्प्रेम लीलाएं उत्तरोत्तर बढ़ने लगीं| उन लीलाओं के द्वारा सहज ही में श्री भगवन नाम का प्रचार भी होने लगा इसके लिए आपको कोई अलग प्रयास नहीं करना पड़ा सहज आवस्था में विचरने वाले महापुरुषों के द्वारा जीवोध्दार का कार्य भी स्वभाविक ही होता है इसके लिए उन्हें कोई अलग से संकल्प नहीं करना पड़ता | इस प्रकार आपके द्वारा भी जीवो में स्वभावत: भगवत्प्रेम का प्रसार हुआ आप सड़क पर चल रहे हैं सामने कोई सीधा साधा ग्रामीण व्यक्ति आ गया मानो उसके जन्म जन्म के पूण्यों ने ही ऐसा संयोग उपस्थित कर दिया | श्री महाराज जी उसके पांव पकड़कर अनुनय-विनय करने लगते भाई क्या तुमने मेरे प्यारे श्याम सुंदर देखे हैं | यदि देखे हैं तो मुझे भी बता दो | हाय मेरे प्राण निकल रहे हैं कोई मुझे भी मेरे प्रावधान के दर्शन करवा दो अरे जो मुझे मेरे प्यारे से मिल जाएगा उस का आभार में कभी नहीं भूलूंगा ऐसा कह कर आप फूट-फूट कर रोने लगते वह बेचारा चक्कर में पड़ जाता और उन्हें समझाने का प्रयत्न करता तो आप कहते अच्छा तुम मुझे मेरे प्यारे का नाम सुनाओ मैंने सुना है कि नाम नामी से भिन्न नहीं होता और जहां श्रीकृष्ण प्यारे के नाम गुणों का गान होता है वहां वह अवश्य पधारते हैं |

*नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हृदये न वा।मद्भक्ता: यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद।।*
नारद संहिता मैं लिखा है कि भगवान नारायण कहते हैं
हे नारद ! न तो मैं वैकुंठ में रहता हूँ और न योगियों के हृदय में, मैं तो वहाँ निवास करता हूँ, जहाँ मेरे भक्त-जन कीर्तन करते हैं,
अतः तुम मुझे उनका नाम ही सुनाओ इस पर वह कहता बाबा में किस तरह नाम गान करूं तो आप खड़े होकर केवल हरि हरि हरि शब्दों का उच्चारण करते और हाथों से ताली बजाने लगते इसी तरह वह भी करने लगता हरि नाम की धुन सुनकर और भी दो चार पशु चराने वाले ग्वारिये इकट्ठे हो जाते हो तुम खूब रंग जमता श्री हरिनाम उनके मुख से चिपक जाता उसके प्रभाव से विवस हो कर नाचने लगते एक नवीन तरंग में बह जाते । और वहां आनंद की लूट सी होने लगती । इस प्रकार उन्हें पागल बनाकर आप वहां से चल देते थे और फिर किसी दूसरी जगह दूसरे व्यक्ति पर इसी प्रकार का जादू करने लगते । इस प्रकार हरिनाम के अद्भुत प्रेम ने ही आपको इस प्रांत में स्वामी स्वत:प्रकाश से श्री हरि बाबा जी महाराज अथवा इस क्षेत्र के ग्रामीण लोगों की दृष्टि में श्री हरि भगवान बना दिया ।
एक बार कोई घास निकालने वाला घास निकाल रहा था रहा था कि श्री महाराज जी उसके पास जा पहुंचे और उसे साष्टांग दंडवत प्रणाम करने लगे| वह बेचारा तो हक्का-बक्का रह गया और श्री महाराज जी के चरणों में गिरकर बोला बाबा दंडौत अरे बाबा मैं तो बहुत गरीब आदमी हूं मुझे क्यों अपराधी बनाते हो मेरे पास तो एक पैसा भी नहीं है जो मैं तुम्हारी कुछ सेवा कर सकूं | मैं तो रोज दो चार आने की यह घास भेज कर अपना पेट पालता हूं | तब आप उससे बोले भैया तुम तो मुझे बस हरि नाम सुना दो तो वह बोला बाबा हरिनाम धन सुनाऊंगा तो खाऊंगा क्या मैं घास खोदूं या हरिनाम सुनाऊं, तब आपने उसके हाथ से खुरपी ले ली और उससे बोले भैया तुम हरि नाम नाम सुनाओ लाओ तुम्हारी घास मैं खोदता हूं | वह बेचारा बहुत हीरा गिड़गिड़ाया परंतु श्री महाराज जी ने उसकी एक न सुनी | अंत में वह विवश होकर हरी-हरी करने लगा और श्री महाराज जी बड़े मनोयोग से उसकी घास खोदने लगे | श्री महाराज जी की युवावस्था थी और शरीर में बल भी खूब था अतः आप ने 1 घंटे में इतनी घास खोद डाली जो उससे दोपहर तक बड़ी मुश्किल से खुद पाती| फिर घास की गठरी बांध कर उसको उठवा दी और उससे कहा जाओ तुरंत देखो ध्यान रहे हरिनाम को मत भूलना | मैं रोज ठीक समय पर आ कर तुम्हारी घास खोद दिया करूंगा |
इस प्रकार बहुत दिनों तक ठीक उसी समय पहुंचकर आप उसके लिए एक घंटे में एक गठरी घास खोदा करते थे और वह आपको हरिनाम सुनाया करता था | इससे हरिनाम में उसका प्रेम दिनों दिन बढ़ता ही चला गया उसकी घास की गठरी भी पहले की अपेक्षा दोगुने पैसों में बिकने लगी कुछ दिनों बाद वह खेती करने लगा और अच्छा मालदार आदमी बन गया श्री महाराज जी के प्रति उसकी अनन्य भक्ति थी इस घटना को स्मरण करके वह फूट फूट कर रोया करता था इस प्रकार उसके दोनों लोक सुधर गए अंत में भी उसने हरी नाम लेते हुए ही शरीर को छोड़ा |
इसी तरह एक बार आप किसी किसान के पास गए वह हल जोत रहा था और हल जोतते जोतते बहुत थक चुका था | उसने श्री महाराज जी को देखते ही उन्हें दंडवत प्रणाम किया आप उससे बोले भइया तुम बहुत थक गए हो आओ थोड़ी देर विश्राम लेक श्री हरि नाम लो | वह कृषक गिड़गिड़ाकर कहने लगा बाबा मुझे तो अभी बहुत जोतना है | आप तो साधु है आपका काम तो मांग कर खाना और भजन करना है आप तो मांग कर खा लोगे | मैं यदि हल नहीं चलाऊंगा तू अपने बच्चों का पेट कहां से भरूंगा और कहां से स्वयं खाऊंगा | आपने उससे कहा अच्छा भइया तेरा हल मैं चलाता हूं तू मुझे प्यारे हरि नाम को सुना | वह बेचारा किसान विवश हो गया और समझ ही न सका कि अब क्या जवाब दें | जब उसने हरिनाम नहीं सुनाया तू श्री महाराज जी उसके पांव पकड़कर बड़ी विनयपूर्वक बोले?? भाई हरि नाम बोलो बिना हरि नाम के गति नहीं है मनुष्य जीवन बड़े भाग्य से मिला है इस दुर्लभ शरीर को पाकर व्यर्थ गंवाना बड़ी मूर्खता है इसलिए तुम हाथों से तो काम करो और मुंह से हरी नाम बोलो | इससे तुम्हारे दोनों लोक सहज ही बन जायेंगे | यह कह कर आपने उसके हल की मूठ पकड़ ली और उसका हल चलाने लगे | वह आपके आग्रह के सामने नतमस्तक होकर हरिनाम उच्चारण करने लगा आप भी उसके साथ-साथ हरिनाम उच्चारण करते जाते थे और हल चलाते जाते थे | आपका अलौकिक तीन प्रेम देखकर जादू भरा हरी नाम लेते ही उसका पाषाण हृदय मोम की भांतिपिघल गया और वह हरी नाम लेता हुआ फूट-फूट कर रोने लगा | इस घटना को देखकर आसपास के सभी किसान इकट्ठे हो गए और चकित होकर वह भी साथ-साथ हरि नाम लेने लगे | बस फिर तो आनंद की ऐसी तरंग उठी कि सब लोगों के पाप तापों को बहा कर ले गई | इधर हमारी सुरसुरा मणि इधर हमारी सुरसुरा मणि बड़ी परिश्रम के साथ उसका हल चलाते रहें और बिल्कुल ठीक ठीक इधर हमारी सुरसुरा मणि बड़ी परिश्रम के साथ उसका हल चलाते रहें और बिल्कुल ठीक ठीक उसका इधर हमारी सुरसुरा मणि बड़ी परिश्रम के साथ उसका हल चलाते रहें और बिल्कुल ठीक ठीक उसका इधर हमारी सुरसुरा मणि बड़ी परिश्रम के साथ उसका हल चलाते रहें और बिल्कुल ठीक ठीक उसका हल जोत ते रहे इधर हमारे चतुरचूड़ामणि बड़े परिश्रम के साथ उसका हल चलाते रहें और बिल्कुल ठीक ठीक उसका हल जोतते रहे | वह किसान जब चैतन्य हुआ तो उसने दौड़कर आपसे हल छीन लिया | और बैलों को खड़ा करके आपके चरणों में गिर पड़ा और रोते-रोते कहने लगा बाबा आपने मुझे कृतार्थ कर दिया बस आज से मैं सब काम काज करते हुए भी प्यारा हरि नाम कभी नहीं छोडूंगा | इस प्रकार वह प्रसंग सदा के लिए आपका भक्त बन गया अब तो उसी की तरह आसपास के अन्य किसान भी अपने अपने खेतों में काम करते समय भगवन्नाम उच्चारण करने लगते थे | जिस खेत में हमारे सरकार श्री श्री 108 श्री हरि बाबा जी महाराज ने हल चलाया था वह तो मानो कल्पवृक्षकावन ही बन गया | उस खेत में किसान कैसा भी उल्टा सीधा बीज डाल देता वह खेत अंधाधुंध अनाज पैदा करता था | इससे कुछ ही दिनों में किसान मालामाल हो गया
एक समय की बात है जेष्ठ का महीना था सवेरे के 10:00 बजे थे बड़े कड़ाके की धूप पड़ रही थी श्री महाराज जी बरोड़ा से गंवा जा रहे थे रास्ते में आपको एक बूढ़ा कुम्हार मिला वह मिट्टी के बर्तनों का टोकरा अपने सिर पर रखे कहीं जा रहा था| आपने देखा कि वह बूढ़ा कुम्हार दोपहर में इतना बोझा उठाने से घबरा गया है| अतः उसके पास जाकर श्री महाराज जी ने उससे पूछा बाबा तुम कहां जा रहे हो बड़े थके हुए जान पड़ते हो लाओ मैं तुम्हारा टोकरा उस वृक्ष की छाया में उतरवा दूं ,तुम थोड़ी देर विश्राम कर लो| उस बेचारे बूढ़े कुमार ने सहानभूति भरे वचन सुनकर कहा अच्छा बाबा उतरवा दो | आपने उस का टुकड़ा उतरवाकर पूछा बाबा तुम कहां जाओगे | उस बूढ़े ने कहा मुझे सिंघौली जाना है वहां बड़े मुकद्दम के घर ब्राह्मण भोजन है और मेरा सामान पहुंचाने का समय भी हो चुका है | गांव अभी भी यहां से 3 मील दूर है | वह बूढ़ा श्री महाराज जी से यह कहकर कि अब मैं समय पर वहां कैसे पहुंचूंगा यदि मैं समय पर न पहुंच सका तो वह मुझको पीटेंगे और गांव में भी नहीं रहने देंगे यह कहकर वह बेचारा रोने लगा | उसकी बात सुनकर श्री महाराज जी का हृदय पिघल गया आप बोले ला भाई मैं तेरा टोकरा वहां पहुंचा देता हूं वह घबराया और बोला नहीं बाबा ऐसी बात मत कहो इससे तो मुझे बहुत पाप लगेगा परंतु आपने उसे डरा धमकाकर टोकऱा उठा लिया और उससे कहा कि तू हरिनाम सुनाता चल और फिर जल्दी-जल्दी चलकर वांछित गांव के बाहर जा पहुंचे फिर गांव के बाहर ही टोकरा उसके सर पर रख कर चल दिए वह बेचारा बहुतेरा गिड़गिड़ाया कि भोजन यहां करते जाओ परंतु आपने उसकी एक न सुनी हिरण की से छलांग मार से 4 मील दूर गंवा में पहुंचकर ही भिक्षा की | वह कुम्हार उसी दिन से आप का भक्त हो गया टोकरा लेकर चलते समय जो हरिनाम वह कर रहा था वह उसके मुख से सदा के लिए चिपक गया और उसकेबाद दोनों लोक सुधर गए|
इसी प्रकार एक दिन श्री महाराजजी एक कृषक के पास पहुंचे वह बेचारा किसान अपने खेत में कुंआ चला रहा था आपने उससे कहा भाई तू मुझे हरिनाम सुना दे वह बोला महाराज जी तुम तो साधु हो आपको तो हर समय हरि नाम ही सूझता है | बाबा मैं तो बहुत गरीब आदमी हूं यदि खेत में पानी नहीं लगाऊंगा तो अनाज कैसे होगा और मेरे बच्चे भला क्या खाएंगे | मैं तो भूखा मर जाऊंगा | तब आपने उससे कहा ला भाई तेरा काम मैं करता हूं तू मुझे हरिनाम नाम सुना दे | वह बोला नहीं बाबा ऐसा करने से मुझे पाप लगेगा मैं आप से अपना काम नहीं करवाऊंगा बस आप अपना भजन करें और मुझे अपना काम करने दें | परंतु आप नहीं माने और उसके हाथ से ढेंकुली छीनकर जबरजस्ती काम करने लगे | अब वह बेचारा किसान विवश होकर हरी-हरी करने लगा आप उसका काम भी करते जाते और उसके साथ जोर जोर से हरी नाम का उच्चारण भी करते जाते | उसने कई बार आपसे ढेंकुली छोड़ने की प्रार्थना की परंतु आपने उसकी एक न सुनी और उसी प्रकार दोपहर तक कुआं चलाते रहे | उस किसान के पास कुछ छाछ थी वह श्री महाराज जी ने अपने कमंडल में ले ली और उसमे जल मिलाकर लस्सी बना ली बीच-बीच में जब वह किसान हुक्का पीता था तब आप लस्सी पीते थे इस तरह सारे दिन का काम आपने 4 घंटे में ही कर डाला | जब उसके घर से रोटी आई तब उसके बहुत आग्रह करने पर भी आपने रोटी का एक छोटा सा टुकड़ा ही लिया और फिर गंवा में जाकर ही भिक्षा की |
आपके इसी प्रकार के खेल निरंतर चलते रहते थे इस प्रकार खेल ही खेल में श्री हरि नाम वितरण होने लगा आपका यह जंगल में जाते थे वहां गलियों के साथ श्री हरि नाम कीर्तन करते और कभी कोई बालोचित खेलकूद कूद भी करते थे |

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