कुसुमांजलि जीवन परिचय भाव पुष्प

( जीवन-परिचय ) श्री श्री हरि बाबा जी

" श्रीहरि "

संवत १९४१ के फागुन मास की शुक्ल चतुर्दशी की वह तिथि होशियार पुर वासीयो के लिए ही नही वरण भारत के समस्त भागवत प्रेमियो के लिए शुभ तिथि थी क्यो की उस दिन भक्त चकोरो के लिए पूर्ण चन्द्र के समान श्री हरि बाबा जी महाराज का जन्म हुया था .
श्री हरि बाबा जी का नाम उनके पिताजी ने दीवान सिंह रखा था आजीवन ब्रह्मचारी रहने वेल श्रीमहाराज जी को जब चार वर्ष की अल्प आयु मे गुरु देव श्री सच्चिदानंद जी का आशीर्वाद प्राप्त चुका था तो भला संसारिक प्रपंच बंधन मे कैसे पड़ते वे तो स्वंय दूसरो को बंधन मुक्त करने के लिए आए है| माधमिक शिक्षा होशियारपुर मे पूर्ण हुई|और आगे डॉक्टर बनाने के विचार से पिताजी ने लाहोर मे कालेज मे प्रवेश दिला दिया,किंतु अब तक तो दीवानसिंह भगवत् प्रेम के पूरे दीवाने बन चुके थे|

भगवत्प्रेम मैं इस तरह डूब गए कि कि कॉलेज भी छूट गया | वैराग्य बढनें पर आप नें गुरुदेव से संन्यास की आज्ञा माँगी परंतु गुरुदेव से अनुमति न मिलनें पर आपनें गुरु आश्रम की चहल पहल को छोड़ कर काशी मैं गंगा किनारे एकांत वास किया और वहीं वैराग्य की तीव्रता मैं भगवा वस्त्र धारण कर लिये | तत्पश्चात जब हमारे प्राणाधार अति संकोच सहित ( कि गुरु आज्ञा मिले बिना मैनें संन्यास धारण किया)पुनः अपनें गुरु चरणों मैं आए तो गुरु जी नें प्रसंन्नता के साथ अपनें स्वतः वैराग्य धारण करनें वाले परम शिष्य हमारे खादर के सूर्य संत शिरोमणि महाराजजी को परम आदरणीय श्री श्री १००८ श्री “स्वतः प्रकाश” नाम से अलंकृत किया जिन्हें आगे चल कर श्री हरि नाम संकीर्तन जप सुमिरन की गंगा प्रवाहित करनें के कारण श्री श्री १००८ श्री हरि बाबा जी महाराज के नाम से जाना गया | जब खादर क्षेत्रवासियों के भाग्य का सूर्य उदय हुआ तब ज्ञान ,भक्ति ,करुणा दीनबंधुत्व और हरि नाम संकीर्तन के दिव्य सूर्य परम आदरणीय श्री “स्वतः प्रकाश” या परम पूज्य श्री हरि बाबा जी महाराज गुरु आश्रम की चहल पहल से पुनः ऊब कर गंगातट पर अनूपशहर के समीप भेरिया नामक गाँव मैं परम वेदांती स्वामी अच्युतमुनि जी से वेदांत शिक्षा ग्रहण करनें लगे | इन्हीं श्री अच्युतमुनि जी के साथ एक बार आप वर्धा गए जहाँ सुप्रसिद्ध संत समर्थ गुरु रामदास की परंपरा का “हनुमान गढी” नामक एक स्थान था वहाँ आप सायंकालीन संकीर्तन मै जानें लगे संकीर्तन मै सम्मलित हो कर आपको बहुत आनंद प्राप्त हुआ यहाँ तक कि संकीर्तन मै आपको भाव समाधि पुलक कंप आदि अष्ट सात्विक विकारों का अनुभव होनें लगा इस प्रकार आपका जीवन वेदांत से भक्ति की ओर मुड़ गया , हृदय पर नाम नरेश का अखण्ड साम्राज्य स्थापित होगया |
फिर तो इस कल्याणकारी दिव्य धन को आपनें घंण्टा बजा बजा कर बाँटा ऐसी लूट मचादी उस दिव्य आनंद की कि कोई राम नाम की मणि के बिना कंगाल न रह जाय|

2 Comments

Click here to post a comment

  • हरि बोल। श्री बांध बिहारी जी महाराज की अनुपम दिव्य लीला का श्रवण कराने के लिए एडमिन महोदय का हार्दिक आभार।