वचनामृत श्री आनंदमई माँ जी के वचनामृत श्री हरि

माँ आनंदमयी के साथ प्रश्नोत्तर

" श्रीहरि "

माँ आनंदमयी के साथ प्रश्नोत्तर

प्रश्न : आपत्ति को दूर करने का क्या उपाय है ?
माँ : गुरु का उपदेश सुनो, इससे जो नष्ट होनेवाला है उसका नाश हो जायेगा और जो नष्ट होनेवाला नहीं है वह भगवत्तत्त्व प्रकाशित हो जायेगा ।

प्रश्न : गुरु-सेवा क्या है ?
माँ : बिना विचारे गुरु के आदेश का पालन करना ।

प्रश्न : गुरु का आश्रय लिये बिना क्या साधन नहीं होता है ?
माँ : तुम्हारा प्रश्न और इस शरीर का उत्तर ही तो प्रमाण है कि तुम गुरु के निकट ही जिज्ञासु हो । 

प्रश्न : मंत्र किसको कहते हैं और ब्रह्मविद्या क्या है ?
माँ : मन का जो त्राण करता है उसीको ‘मंत्र’ कहते हैं । गुरुजी ने जो मंत्र दिया है जब तक उसका प्रकाश न हो, तब तक नियमित रूप से साधन-भजन करना चाहिए । जिस विद्या से अविद्या का नाश होता है उसे ‘ब्रह्मविद्या’ कहते हैं । यह विद्या जीवन के पथ को प्रकाशित करती है । ब्रह्मविद्या के प्रकाशित होने के लिए ही गुरुजी मंत्रोपदेश देते हैं ।

प्रश्न : किस अर्थ में गुरुदेव हमारे साथ हैं ?
माँ : यह बात अनेक अर्थों में बतायी जा सकती है । अखण्ड भाव से देखो तो गुरुदेव विश्वब्रह्माण्ड के अणु-अणु में व्याप्त हैं – इस अर्थ में वे तुम्हारे साथ हैं । विचार करने पर देखा जाता है कि जगत में एक ही सत् वस्तु है, वही गुरु और वही शिष्य है – इस अर्थ में गुरु तुम्हारे साथ हैं । इसके अलावा मंत्ररूप में गुरु तुम्हारे साथ हैं और विषय को खण्डरूप में देखने पर योगीगण योग के जरिये एक ही समय अनेक जगह रह सकते हैं । शिष्य के मंगल के लिए गुरु योगशक्ति के जरिये खण्डरूप में सभी शिष्यों के साथ सर्वदा रह सकते हैं । 

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