श्री आनंदमई माँ जी के वचनामृत श्री हरि संत परिकर समकालीन संस्मरण

माँ के आग्रह पर हरि बाबा जी महाराज का वापस आना….

" श्रीहरि "

उस समय वहा उपस्थित डाक्टर …… के अपने शब्दो मे…..
मा के आग्रह पर बाबा का वापस आना….

एक बार श्री महाराज बहुत बीमार पड़ गये। डॉक्टर ने लिखा हैः “उनका स्वास्थ्य काफी लड़खड़ा गया और मुझे उनकी सेवा का सौभाग्य मिला। उन्हें रक्तचाप भी था और हृदय की तकलीफ भी थी। उनका कष्ट इतना बढ़ गया था कि नाड़ी भी हाथ में नहीं आ रही थी। मैंने माँ को फोन किया कि ‘माँ ! अब बाबाजी हमारे बीच नहीं रहेंगे। 5-10 मिनट के ही मेहमान हैं।’ माँ ने कहाः ‘नहीं, नहीं। तुम ‘श्रीहनुमानचालीसा’ का पाठ कराओ मैं आती हूँ।’

मैंने सोचा कि माँ आकर क्या करेंगी? माँ को आते-आते आधा घण्टा लगेगा। ‘श्रीहनुमानचालीसा’ का पाठ शुरु कराया गया और चिकित्सा विज्ञान के अनुसार हरिबाबा पाँच-सात मिनट में ही चल बसे। मैंने सारा परीक्षण किया। उनकी आँखों की पुतलियाँ देखीं। पल्स (नाड़ी की धड़कन) देखी। इसके बाद ‘श्रीहनुमानचालीसा’ का पाठ करने वालों के आगेवान से कहा कि अब बाबाजी की विदाई के लिए सामान इकट्ठा करें। मैं अब जाता हूँ।

घड़ी भर माँ का इंतजार किया। माँ आयीं बाबा से मिलने। हमने माँ से कहाः “माँ ! बाबाजी नहीं रहे… चले गये।”

माः “नहीं,नहीं…. चले कैसे गये? मैं मिलूँगी, बात करूँगी।”

मैं- “माँ ! बाबा जी चले गये हैं।”

माँ- “नहीं। मैं बात करूँगी।”

बाबाजी का शव जिस कमरे में था, माँ उस कमरे में गयीं। अंदर से कुण्डा बंद कर दिया। मैं सोचने लगा कि कई डिग्रियाँ हैं मेरे पास। मैंने भी कई केस देखे हैं, कई अनुभवों से गुजरा हूँ। धूप में बदले सफेद नहीं किये हैं, अब माँ दरवाजा बंद करके बाबाजी से क्या बात करेंगी?

मैं घड़ी देखता रहा। 45 मिनट हुए। माँ ने कुण्डा खोला एवं हँसती हुई आयीं। उन्होंने कहाः “बाबाजी मेरा आग्रह मान गये हैं। वे अभी नहीं जायेंगे।”

मुझे एक धक्का सा लगा ! ‘वे अभी नहीं जायेंगे? यह आनंदमयी माँ जैसी हस्ती कह रही हैं ! वे तो जा चुके हैं !

मैं- “माँ ! बाबाजी तो चले गये हैं।”

माँ- “नहीं, नहीं…. उन्होंने मेरा आग्रह मान लिया है। अभी नहीं जायेंगे।”

मैं चकित होकर कमरे में गया तो बाबाजी तकिये को टेका देकर बैठे-बैठे हंस रहे थे। मेरा विज्ञान वहाँ तौबा पुकार गया ! मेरा अहं तौबा पुकार गया !

बाबाजी कुछ समय तक दिल्ली में रहे। चार महीने बीते, फिर बोलेः “मुझे काशी जाना है।”

मैंने कहाः “बाबाजी ! आपकी तबीयत काशी जाने के लिए ट्रेन में बैठने के काबिल नहीं है। आप नहीं जा सकते।”

बाबाजीः “नहीं… हमें जाना है। हमारा समय हो गया।”

माँ ने कहाः “डॉक्टर ! इन्हें रोको मत। इन्हें मैंने आग्रह करके चार महीने तक के लिए ही रोका था। इन्होंने अपना वचन निभाया है। अब इन्हें मत रोको।”

बाबाजी गये काशी। स्टेशन से उतरे और अपने निवास पर रात के दो बजे पहुँचे। प्रभात की वेला में वे अपना नश्वर देह छोड़कर सदा के लिए अपने शाश्वत रूप में व्याप गये।“

‘बाबाजी व्याप गये’ ये शब्द डॉक्टर ने नहीं लिखे, ‘नश्वर’ आदि शब्द नहीं लिखे लेकिन मैं जिस बाबाजी के विषय में कह रहा हूँ वे बाबाजी इतनी ऊँचाईवाले रहे होंगे।

कैसी है महिमा हमारे महापुरुषों की ! आग्रह करके बाबा जी तक को चार महीने के लिए रोक लिया माँ आनंदमयी ने ! कैसी दिव्यता रही है हमारे भारत की सन्यासीयो की !

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