बाँध धाम भक्त परिकर श्री हरि संकलनकर्ता समकालीन संस्मरण

पूज्यपाद श्रोहरि बाबा की दिनचर्या

" श्रीहरि "

पूज्यपाद श्रोहरि बाबा की दिनचर्या

(ब्रह्मचारी श्रीहरेकृष्ण)

प्रादः ब्रह्ममुहुत्र्त दो बजकर पन्द्रह मिनट घड़ी एलार्म। दातुन आदि से निवृत्त हो, कुछ नियत पुस्तकों का पाठ। जिसमें दिन (वार) महिमा, गीता, विश्णुसहस्त्र नाम, सुखमनी साहिब आदिषामिल थीं।
तत्पष्चात् मालिष व स्नान करके प्रातःकालिन सामूहिक कीत्र्तन में जो निम्न प्रकार से लगभग एक घण्टे चलता था।

प्रातःकालीन नित्य संकीत्र्तन और प्रार्थनाके पद
(एक बार लम्बे स्वंरसे) ऊँ राम (कीत्र्तन)
श्रीकृश्ण चैतन्य प्रभु नित्यानन्द।
हरे कृश्ण हरे राम राधे गोविन्द।।
(एक दिनभगवान् जगदीष्वर की स्तुति और दूसरे दिन रुद्राश्टक)

भगवान श्रभजगदीषष्वर की स्तुति
ऊँ जय जगदेष्वर……..
(रुद्राश्टक रामचरित मानस उत्तरकाण्ड)
नमामीषमीषान……..आपन्नमामीष षंभो।
(श्रीकृश्ण ध्यान एवं वन्दना)
कस्तूरी तिलकं…….मुक्तावली।
गोपस्त्रीपरिवेश्टितो…….दिव्यांग भूशं भजे।
राधाकृष्णवहं वन्दें…….रासमण्डल मण्डनः।
(नाम माहात्म्य)
न नाम सह्षं ज्ञान……..न नाम सह्षाीगतिः।
(श्रीगौरांगाश्टोत्तर षतनामवलिः)
(वासुदेव सार्वभौम भट्टचार्य रचित)
नमस्कृत्य प्रवक्ष्यामि……….औड्रदेषजनानन्द संदोहामृतरूपधृक्।
(हनुमान चालीसा एवं आरती)

मंगल कामना
स्वस्त्यस्तु विष्वस्य खेलः प्रसीदतां,
ध्यानन्तु भूतानि षिवं मिथोधिया।
मनष्य भद्रं भजतादधोक्षजे,
आवेष्यतां नो मतिरप्यहैतुकी।।

हे नाथसम्पूर्ण विष्व का-कल्याण हो,
दुश्ट लोग अपनी दुश्टता छोड़कर-षान्त हो।
परस्पर एक दूसरे का-हितचिन्तन करें,
हमारा मन षुभमार्ग में-प्रवृत्तहो।
हमारी बुद्धि निश्काम भाव से-भगवान् श्रीहरिमें
लगे।।
(श्रीदुर्गा सप्तषती)

छेवि प्रपन्नर्तिहरे……चराचरस्य।।
त्वं वैश्णो…………मुक्ति हेतुः।।
विद्या समस्तातव…..स्तव्यपरा परोक्तिः।।
दुर्गे स्मृता……….. सदाऽऽर्द्रचित्ता।।

(कीत्र्तन) गौरहरि बोल-गौर हरि बोल।
(भुजां ऊँचे उठाकर प्रत्येक अक्षर लम्बे स्वर से)

निताई गोर हरि बोल।

हर-हर महादेव-ऊँ नमः षिवाय

हनुमान की हॅँू

जय जय सीताराम-जय जय राधेष्याम
ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय(112बार)
(कीत्र्तन) श्रीराम जय राम जय-जय राम
हरे कृश्ण हरे कृश्ण कृश्ण कृश्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

संकीत्र्तन के बाद साढ़े चार से पँाच बजे प्रातः भ्रमण इस समय में आप पूर्णतः मौन रहते थे।

परिभ्रमण से वापस आकर स्वाध्याय एवं जलपान करके पन्द्रह बीस मिनट विश्राम लेते थे।

तत्पष्चात छः से नौ बजे तक स्वाध्याय। नौ से साढ़े ग्यारह बजे तक जीजीादर्षन या कथा सत्संग।

साढ़े ग्यारह बजे से बारह बजे के बीच भजन तथा दोपहर बारह बजे से एक बजे तक विश्राम गर्मियों में। सर्दियों में यह विश्राम पन्द्रह बीस मिनट का ही हो पाता था।

अपराह्न एक बजे से साढ़े तीन बजे तक स्वाध्याय।संाय काल साढ़े तीन बजे से साढ़े पाँच बजे तक कथा, सत्संग। बाद में कुछ समय एकांत निवास।

आगे एक घण्टे के लिए संाय कालीन भ्रमण। और तदनन्तर सामूहिक सध्ंया कीत्र्तन।

(एक बार लम्बे स्वर से) ऊँ राम राम (कीत्र्तन)

हरे कृश्ण हरे कृश्ण कृश्ण-कृश्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।

(एक दिन रसिया और दूसरे दिन पद)

(रसिया)

जय जय राधे कृश्ण‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘परमानन्द।।

Add Comment

Click here to post a comment