श्रीराधा का ‘श्रीकिशोरीजी’ नाम क्यों?
व्रज की अधीश्वरी श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति श्रीराधा का व्रज में‘श्रीकिशोरीजी’ नाम बहुत प्रसिद्ध है। श्रीराधा सभी समय किशोरावस्था में ही रहती हैं, उनके जैसा मधुर स्वरूप और किसी का नहीं है। प्रेम सदैव किशोर ही रहता है। श्रीराधा प्रेम की प्रतिमा हैं अत: किशोरी हैं, नित्यकिशोरी हैं।
स्यामा गोरी नित्य किशोरी प्रीतम जोरी श्रीराधे।
जय राधे जय राधे राधे जय राधे जय श्रीराधे।। (श्रीनिम्बार्काचार्यजी)
श्रीराधाका स्वभाव बहुत कोमल है। वे कोमलातिकोमल हृदय हैं। वह कोमल हृदय वाले व्यक्ति के कोमल भावों से सदैव प्रसन्न रहती हैं। उन्हें कठोर मन व भाव वाला मनुष्य पसन्द नहीं है। श्रीराधा सुन्दरता की सीमा है। श्रीराधा के तत्त्व और रहस्य को समझना हर किसी के लिए संभव नहीं है। भगवान से अपने लिए कभी भी कुछ न चाहने की इच्छा रखकर भगवान से प्रेम करने का क्या अभिप्राय है–इसी भक्ति की अभिव्यक्ति का नाम श्रीराधा है।
ये प्रेम की अकथ कहानी नाहिं समझैं ज्ञानी-ध्यानी।
जाहे जानें बिरज की नारि जपे जा राधे राधे।।
जो राधा नाम न होतो रसराज बिचारो रोतो।
नहीं होतो कृष्ण अवतार जपे जा राधे राधे।।
जो राधा राधा गावें वो प्रेम पदारथ पावें।
बाकौ ह्वै जाए बेड़ा पार जपे जा राधे राधे।।
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