तुलसी की महिमा बताते हुए भगवान शिव नारदजी से कहते हैं:-
“पत्रं पुष्पं फलं मूलं शाखा त्वक् स्कन्धसंज्ञितम्।
तुलसी संभवं सर्वं पावनं मृत्तिकादिकम॥”
अर्थात:- ‘तुलसी का पत्ता, फूल, फल, मूल, शाखा, छाल, तना और मिट्टी आदि सभी पावन हैं।’
लंका में विभीषण के घर तुलसी का पौधा देखकर हनुमान जी अति हर्षित हुये थे, इसकी महिमा के वर्णन में कहा गया है:-
नामायुध अंकित गृह शोभा वरिन न जाई।
नव तुलसिका वृन्द तहंदेखि हरषि कपिराई।
तुलसी की आराधना करते हुए ग्रंथ लिखते हैं:-
महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्य वर्धिनी ।
आधिव्याधि हरिर्नित्यं तुलेसित्व नमोस्तुते॥
हे तुलसी! आप सम्पूर्ण सौभाग्यों को बढ़ाने वाली हैं, सदा आधि-व्याधि को मिटाती हैं, आपको नमस्कार है।
तुलसी को लगाने से, पालने से, सींचने से, दर्शन करने से, स्पर्श करने से, मनुष्यों के मन, वचन और काया से संचित पाप जल जाते हैं।
वायु पुराण में तुलसी पत्र तोड़ने की कुछ नियम मर्यादाएँ बताते हुए लिखा है:-
अस्नात्वा तुलसीं छित्वा यः पूजा कुरुते नरः।
सोऽपराधी भवेत् सत्यं तत् सर्वनिष्फलं भवेत्॥
अर्थात् :- बिना स्नान किए तुलसी को तोड़कर जो मनुष्य पूजा करता है, वह अपराधी है।
उसकी की हुई पूजा निष्फल जाती है, इसमें कोई संशय नहीं।
गले में तुलसी की माला पहनने से विधुत की लहरें निकलकर रक्त संचार में रूकावट नहीं आने देतीं।
प्रबल विद्युतशक्ति के कारण धारक के चारों ओर चुम्बकीय मंडल विद्यमान रहता है।
तुलसी की माला पहनने से आवाज सुरीली होती है, गले के रोग नहीं होते, मुख गोरा, गुलाबी रहता है।
हृदय पर झूलने वाली तुलसी माला फेफड़े और हृदय के रोगों से बचाती है।
इसे धारण करने वाले के स्वभाव में सात्त्विकता का संचार होता है
तुलसी की माला धारक के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाती है।
तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पापनाशक समझा जाता है तथा पूजन करना मोक्षदायक।
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