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गुरु वन्दना

" श्रीहरि "

श्री हरि

गुरु वन्दना
श्री गुरुदेव तुम्हारी जय हो।
कृपा दृश्टि कर दो प्रभु ऐसी , मेरा जीवन मंगलमय हो।।
श्री गुरुदेव
दृढ़ मति हो गुरु के वचनों में , श्रद्धानत गुरु के चरनों में।
जिज्ञासा हरि से मिलने की , ज्ञान भक्ति वेराग्य उदय हो।।
श्री गुरुदेव
जप तप के श्रनुरूप युक्ति दो , जन सेवा की परम षक्ति दो।
हो उन्भाद नाम का ऐसा , चित्त वृत्ति श्री हरि में य हो ।।
श्री गुरुदेव
तुम ही बह्मा विश्णु महेष्वर , परम बह्म परमात्मा परमेष्वर।
सद भावों से भर दो मुझको , पद लेखन में सदय विनय हो।।
श्री गुरुदेव
षिक्षा -दीक्षा देना मुझको , भूलूॅ मैं न एक क्षण तुमको।
सदा साथ में रहना सत्गुरु , जीवन पथ भी ज्योतिर्मय हो ।।
श्री गुरुदेव
परम महोत्सव गुरु पूजा का , श्री चरनों में षीष नमन का ।
आशीर्वाद मुक्ते ऐसा दो , कर्म क्षेत्र में सदा विय हो ।।
श्री गुरुदेव
पत्र पुश्प फल जल हैं अर्पण , वस्त्रभूण केसर चन्दन।
दो प्रसाद तुम ऐसा प्रभुवर , जिससे पाप पुंज सब क्षय हो।।
श्री गुरुदेव
आरती वन्दन करूं तुम्हारी , गुरु मंदिर का बनूॅं पुजारी।
पूर्ण करो षुभ कामना मेरी , जीवन यात्रा सुख से तय हो।।
श्री गुरुदेव
स्मता क्षमता चाहें मन में , व्याधि रहे न कोई मन में ।
शरणागत‘ गुरु के होने में , मन में मेरे तनिक न क्षय हो।।
श्री गुरुदेव

श्री राम अवतार रस्तोगी द्वारा रचित.( मुरादाबाद )

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