परमआदरणीय स्वामी श्री आत्मानंदगिरि जी महाराज उच्च कोटि के साधक भक्त रहे हैं आज श्री हरि बाबा जी महाराज स्मृति कुसुमांजलि पृष्ठ संख्या 141 पर उन्हीं का लिखा एक दिव्य संस्मरण मिला जिस में कि परम आदरणीय श्री श्री १०८ श्री हरिबाबाजी महाराज नें स्वामी जी के ध्यान क्षेत्र मै प्रवेश कर उनके प्रश्न का उत्तर दिया और साधन पुष्ट किया | आगे श्री स्वामी जी के शब्दों में ही उनकी दिव्य अनुभूति —
आज से लगभग 25 वर्ष पहले जब की मैं कैलाश आश्रम ऋषिकेश से वृंदावन आया ही था तभी गौर कांति युक्त काषाय वस्त्र धारी पूज्यपाद श्री हरि बाबा जी महाराज की अपूर्व मनोहर मूर्ति का दर्शन हुआ| साधक जीवन के सरबत स्वरुप श्री बाबा जी की अभूतपूर्व दिनचर्या तथा अविराम निगूढ भावाविष्ट स्थिति सहज ही मन प्राण को आपकी और विवश कर रही थी | मन में यही आया कि प्रेम तत्व का इससे अधिक अच्छा साकार दर्शन और कहां हो सकता है परंतु मन अपने इसी स्वभाविक हट पर अड़ा रहा कि इनके श्री मुख से ही प्रेम तत्व सुनना है |
एक दिन सत्संग प्रसंग में मैंने पूछा बाबा प्रेम वस्तू क्या है बस अब और क्या था यह पूछना विलक्षण अनुभव का कारण हुआ, एकाएक आप हंस पड़े कुछ बोले नहीं बात उस समय वहीं की वहीं रह गई |
इन दिनों में प्रायः घंटों यमुना जी के किनारे पर बैठकर ध्यान किया करता था अब उस दिन ध्यान में क्या देखता हूं की असंख्य गोपियां एकत्रित होकर बैठी है वह ही कुछ दूर श्री कृष्ण भी एकाकी बैठे हुए हैं , गोपियां माला गूँथने में तत्पर हैं मेरे मन में आया निश्चय ही यह माला गूंथ कर श्रीकृष्ण को ही पहनाएंगी परंतु आश्चर्य की बात यह हुई कि सब ने अपनी अपनी माला गूँथकर स्वयं ही धारण कर ली | तब मैंने सखियों से पूछा “एसा क्यों” वे बोलीं ,”” श्रीकृष्ण को माला पहनाने से हमारी आंखों को ही तृप्ति मिलती है परंतु जब हम माला पहनती हैं तो प्यारे मनमोहन की आंखों को तृप्ति मिलती है |”” वस्तुतः इसी का नाम तो प्रेम है मेरे कहने पर एक ने भगवान को भी माला धारण करवाई | इसके अनंतर क्या देखता हूं किस सभी गोपियां पंक्तिबद्ध शनै -शनै मंडलाकार होकर बैठ गई है बीच में डलिया भर के अनेक प्रकार के सुस्वादु फल रखे हुए हैं उन्हें अमनिया करके परस्पर एक दूसरे को और प्यारे श्री कृष्ण को खिला रही है अपने हाथ से स्वयं कोई नहीं खा रही , और श्रीकृष्ण भी अपने हाथ से नहीं लेते वे गोपियों को खिला रहे हैं | मैनें आनंदित होकर पूछा यह कैसी लीला तो उत्तर मिला
“इसी का नाम तो प्रेम है ”
इस अदभुत लीला को देखकर मेरे आनंद मिश्रित आश्चर्य का ठिकाना ही न रहा जब में अति निकट से यह लीला देखने गया तो क्या देखता हूं कि सब के स्थान पर अति आनंददायक दिव्य तेजोमय प्रकाश युक्त एकमात्र श्री हरि बाबा जी महाराज ही विराजमान हैं | दिव्य चरित्र से मन में अपार आनंद हुआ मेरे प्रश्न का उत्तर मिल चुका था क्या ही स्पष्ट और अपूर्व दर्शन था हृदय बाध्य करता था कि श्री बाबा से इस विष्य में पूछूँ परंतु श्री बाबा की अनोखी संकोचता देखकर मन मसोसकर रह जाता था | धीरे धीरे समय बीतने पर एक दिन की बात है कि शीतकाल होने के कारण मैं अंदर बिस्तर में यथेष्ट कपड़ादि के साथ सो रहा था स्वप्न में क्या देखता हूं कि पूजनीय श्री मां श्री बाबा के दर्शनों के वास्ते प्रतीक्षा कर रही है इतने में ही श्री बाबा राम स्वरूप ब्रहमचारी का हाथ पकड़े धीरे धीरे नीचे आए और हमें देखकर आपने कहा आत्मानंद तुम्हारे अंदर बहुत मैेल भरा है मैं सब साफ कर देता हूं यह कह कर आप बड़ी तीखी दृष्टि से मेरी ओर देखने लगे मैं तो घबरा ही गया और देखते ही देखते मुझे उल्टी पर उल्टी होने लगी और उल्टी भी काली पीली नीली कई रंगों की | इससे मेरे शरीर में अजीब सा रोमांच होने लगा और घबराहट में नींद भी खुल गई तो क्या देखता हूं कि उल्टी से मेरे सारे वस्त्र और बिस्तर सना हुआ है | तब मैंने अपने साथी सदानंद को जगाया और उसकी मदद से सब साफ किया | प्रातः कालीन रात में जब श्री श्री महाराज जी श्री ठाकुर जी प्रचार कर रहे थे मैंने जाकर आपको प्रणाम किया मुझे देखते ही श्री महाराज जी चरण छोड़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे सीधा ऊपर ले गए ऊपर जाकर ब्रह्मचारी से कहा कि इनके वस्त्र गंदे हो गए हैं इन्हें वस्त्र और प्रसाद दो |यह देखकर मैं अवाक रह गया कि श्री महाराजजी को रात के स्वप्न व उल्टी के विषय में ज्ञात है मेरा रहा सहा संदेह भी जाता रहा तथा मैनें दृढ़ता से उनके चरण पकड़ लिए और कहने लगा कि श्री महाराज जी अब मुझे इन भौतिक पदार्थों में न भुलाओ आपका यह प्रसाद तो मुझे जन्म जन्म से ही बहुत प्राप्त है अब तो आपने रात्रि में जो लीला कर दिखाई है उसे सत्य करो और मेरी दोनों आँखों से प्रेमाश्रु गिरनें लगे तब आप हसनें लगे और वहाँ से जानें को उद्यत हुए परंतु मेरा हठ देखकर आपने मुझे जो कुछ आज्ञा दी वही आज मेरे जीवन का एकमात्र आधार बनकर रह गई है |
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