" श्रीहरि "दृश्य में प्रीति न रखना असली बैराग्य है
श्री उडिया बाबा जी के वचनामृत
" श्रीहरि "किसी भी पदार्थ में ममत्व बुद्धि न रख कर सब को ईश्वर की समझते हुये सब की रक्षा करो और संभाल कर रखो, इससे उसके बियोग में दुख नहीं होगा
" श्रीहरि "जन्म जन्मान्तर से हमारा विषयों में अनुराग है, इसी लिये भगवान में अनुराग नहीं होता है/ भगवान में पूर्ण अनुराग होते ही संसार से छुटकारा हो...
" श्रीहरि "सच्चे वैराग्यबान को जो आनन्द प्राप्त होता है वह और किसी को प्राप्त नहीं हो सकता है, व्रह्मादिक भी उस आनन्द को तरसते हैं
" श्रीहरि "संसारी बातों से सुख या शान्ति मिल जायेगी- ऎसा सोचना मूर्खता है
" श्रीहरि "दरिद्री बो है,जो विषयों में फसा हुआ है और धनी वह है जिसे किसी भी चीज की इच्छा नहीं है
" श्रीहरि "परमार्थ साधक को तीन बातें अति अनिवार्य हैं ,
अ- दुनियाँ का चिन्तन ना करे/
ब- दुनियाँ की बात ना करे/
स- दुनियाँ की क्रिया ना करे/
" श्रीहरि "सुने न काहू की कही, कहे न अपनी बात/
नारायण बा रूप में मगन रहे दिन रात//
" श्रीहरि "भोगी पुरुषोम का संग महात्मा के मन को खराब कर देता है, अत: ऎस्व लोगों से दूर ही र्हना चाहिए
" श्रीहरि "साधक को स्त्रियों से एक दम दूर रहना चाहिये
" श्रीहरि "साधु को भूख लगने पर रोटी माँग लेनी चाहिये,मधूकरी वृत्तिसे रोटी मांगना तो गृहस्ती को कृतार्थ करना होता है
" श्रीहरि "साधु को मधूकरी के अलावा कुछ भी मांगने से शरीर में रहने वाले पाँच देवता छोड़ कर चले जाते हैं, ये पाँच देवता ह्री, श्री, धी, ज्ञानऔर गौरव...
" श्रीहरि "साधु को भिक्षा माँग कर ही अपना निर्बाह करना चाहिये, किसी एक स्थान पर बँध जाने सेाधुता नष्ट हो जाती है , धनिकों के अन्न में अनेक प्रकार के...
" श्रीहरि "भगवत्प्रेम के बिना बैरागय नहीं होताऔर सांसारिक बैराग्य के बिना भगबान से प्रेम भी नहीं होता है