मुख्य प्रष्ठ

" श्रीहरि "
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हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलंकलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गतिरन्यथा||

कलियुग में केवल हरिनाम, हरिनाम और हरिनाम से ही उद्धार हो सकता है| हरिनाम के अलावा कलियुग में उद्धार का अन्य कोई भी उपाय नहीं है! नहीं है! नहीं है! कृष्ण तथा कृष्ण नाम अभिन्न हैं, कलियुग में तो स्वयं कृष्ण ही हरिनाम के रूप में अवतार लेते हैं| केवल हरिनाम से ही सारे जगत का उद्धार संभव है “

कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार | नाम हइते सर्व जगत निस्तार|

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श्रीमत् परमहंस परिव्राजकाचार्य श्री उड़िया बाबा जी महाराज अपने समय के एक सर्वमान्य संत थे। उनके अनुभव, ब्रह्मनिष्ठा और त्याग-वैराग्य के कारण साधु-समाज में उनका बहुत ऊँचा स्थान था। आप को देवनागरी में ओरिया बाबा, उरीया बाबा, उड़ीया बाबा या ओड़ीया बाबा के रूप में उल्लिखित और लिखा गया हैं | आप अद्वैत वेदांत के शिक्षक थे और आपको परमहंस माना जाता था। आप एक परिव्राजक थे, अर्थात् जो किसी भी एक स्थान में बहुत लंबे समय तक नहीं रहता | आप का जन्म 1875 में उड़ीसा में जन्म हुआ था | अपने समकालीन संतो मे श्री हरि बाबा जी महाराज से विशेष अनुराग रहा | आप पूज्य श्री स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजी महाराज के सदगुरु थे ।1937-38 के दौरान वृंदावन में आप के लिये श्री कृष्ण आश्रम नामक आश्रम बनाया गया (जिन्हें उड़ीया बाबा आश्रम भी कहा जाता हैं) | आप के कथन में एक नविन ओज और प्रभाव होता था। व आप सदा लक्ष पर दृष्टि रखकर बोलते थे और थोड़े शब्दों में ही बहुत ऊँची बात कह जाते थे। वे यद्यपि कोई वक्ता, व्याख्याकार या लेखक नहीं थे। तथापि उनमें कुछ ऐसा आकर्षण था कि लोग उनके दर्शन और वाक्य-श्रवण को सर्वदा लालायित रहते थे।
2005 के चैत्र कृष्ण चतुर्दसी की दोपहर में, 8 मई 1 9 48 की तारीख, विक्रम संवत , उन्हें ठाकुर दास नामक एक घृणित आदमी द्वारा घातक रूप से हमला किया गया था। [12] उनके नश्वर शरीर को यमुना के पवित्र जल में जला समाधि दी गयी थी |

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परम आदरणीय श्री श्री १००८ श्री हरि बाबा जी महाराज का जन्म 1885 में होली पूर्णिमा पर होशियारपुर में हुआ, इसी दिन चैतन्य महाप्रभु का जन्मदिन भी मनाया जाता है | श्री हरि बाबा जी महाराज को चैतन्य महाप्रभु जी के अवतार के रूप मे भी देखा जाता हैं | बाबा का मूल नाम श्री श्री १००८श्री दीवान सिंह जी था परन्तु वे हरी नाम का इतना अधिक जप सुमिरण , संकीर्तन करते थे की उनका नाम परम आदरणीय श्री श्री १००८ श्री हरि बाबा जी महाराज पड़ गया | आप नाम स्ंकीर्तन की महिमा को चरितार्थ करने वाले अनेको चमत्कारो के सूत्रधार थे | आप लोगो के समूह के साथ, दिन में तीन बार नियमित रूप से तीव्र उत्साह और एकाग्रता के साथ कीर्तन किया करते थे।
श्री महाराज जी का मानना था की–
नाम नामी से भिन्न नहीं होता और जहां श्रीकृष्ण प्यारे के नाम गुणों का गान होता है वहां वह अवश्य पधारते हैं |
“नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हृदये न वा।मद्भक्ता: यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद।।“
नारद संहिता मैं लिखा है कि भगवान नारायण कहते हैं
हे नारद ! न तो मैं वैकुंठ में रहता हूँ और न योगियों के हृदय में, मैं तो वहाँ निवास करता हूँ, जहाँ मेरे भक्त-जन कीर्तन करते हैं,श्री महाराज जी की सहस्रों उपलब्धियों में से एक है बाँध धाम । गंगा नदी में बाढ़ आने पर 700 ग्राम जलमग्न हो गए जिस घटना नें कोमल हृदय श्री हरि बाबा जी महाराज को अंदर तक हिला दिया और तब उन्होंने संकल्प लिया और बिना किसी सरकारी सहायता के गंगा नदी पर 45 किलोमीटर लम्बा बाँध केवल संकीर्तन के आधार पर बना दिया । इस में उन्होंने गरीबों से श्रम दान लिया था यह चमत्कार केवल बाबा ही कर सकते थे।। और इस बाँध पर 80 वर्ष से आज भी अनवरत अखंड हरि नाम संकीर्तन चल रहा है । शायद ही विश्व मै एसा कोई दूसरा पावन धाम हो जहाँ 80 वर्ष से अनवरत हरिनाम आनंद वर्षा हो रही हो | हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । 32 मील लम्बे बांध का निर्माण मात्र ६ महीने में अपने आप में चमत्कारिक बात है |श्री महाराज जी ने 3 जनवरी 1 9 70 में काशी आश्रम में माँ आनंदमयी की उपस्थिति में महासामधि ली |

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श्री हरि चरणो मे भक्तो के भाव पुष्प
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